आत्म-अवलोकन को सदैव सीखने की प्रक्रिया माना गया है और जब हमेशा परहित की चिंता करने वाला संत इस आत्म-अवलोकन में लीन हो जाए, उसके महत्व के उपयोग और उपयोगिता पर समाज को नई दृष्टि दे तो समाज का हित होना निश्चित रूप से तय है। ऐसे ही चिंतन और आत्म-अवलोकन में जब मुनि श्री पूज्य सागर महाराज लीन हुए तो मुझे लगा कि मैं कितना सौभाग्यशाली हूं कि मुझे इस संत का सान्निध्य प्राप्त हुआ है, वो भी एक या दो नहीं, पूरे 20 वर्षों से। मुनि श्री को मैं इतने वर्षों से जानता हूं, इसलिए यह मुझसे छिपा हुआ बिल्कुल भी नहीं है कि मुनि श्री किस तरह सामाजिक, राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय सद्भावना के बारे में चिंता करते हैं, वह इस बात की भी चिंता करते हैं कि कैसे आज नई पीढ़ी धर्म से दूर हो जाती रही है। ऐसे में 48 दिन की मौन साधना के जरिए धर्म और उसके मर्म की प्रभावना करने का उनका भाव मुझे अंदर तक छू गया और मुनि श्री के जरिए आत्म अवलोकन का भाव मेरे भीतर भी जाग गया, जिससे मुझे जीवन को जीने का नया नजरिया मिला।
राजकुमार दोसी
किशनगढ़
मंत्री : शांतिसागर स्मारक ट्रस्ट
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