मन मस्तिष्क की उस क्षमता को कहते हैं जो मनुष्य को चिंतन शक्ति, स्मरण-शक्ति, निर्णय शक्ति, बुद्धि, भाव, इंद्रियाग्राह्यता, एकाग्रता, व्यवहार, परिज्ञान (अंतर्दृष्टि), इत्यादि में सक्षम बनाती है। सामान्य भाषा में मन शरीर का वह हिस्सा या प्रक्रिया है जो किसी ज्ञातव्य को ग्रहण करने, सोचने और समझने का कार्य करता है। मन में उत्पन्न हुए विचारों से हर व्यक्ति प्रति दिन जूझता है । अगर मन पर काबू कर लिया तो ठीक अन्यथा एक बंदर की तरह वह हर क्षण एक डाली से दूसरी पर छलांग लगाता रहता है । मन में विचारों का आवागमन अगर सुचारु तरीके से संचालित ना किया जाए तो परिणाम बड़े विध्वंसकारी हो सकते हैं । इसी संदर्भ में आज एक प्रेरक प्रसंग स्मरण हो आया, जिसे आप से सांझा कर रहा हूँ –
एक बार एक आदमी ने एक भूत पकड़ लिया और उसे बेचने शहर गया। संयोगवश उसकी मुलाकात एक सेठ से हुई। सेठ ने उससे पूछा- भाई! यह क्या है? उसने जवाब दिया कि यह एक भूत है। इसमें अपार बल है। कितना भी कठिन कार्य क्यों न हो, यह एक पल में निपटा देता है। यह कई वर्षों का काम मिनटों में कर सकता है।
सेठ भूत की प्रशंसा सुनकर ललचा गया और उसकी कीमत पूछी। उस आदमी ने कहा- कीमत बस पाँच सौ रुपए है। कीमत सुनकर सेठ ने हैरानी से पूछा- बस पाँच सौ रुपए? उस आदमी ने कहा- सेठ जी! जहाँ इसके असंख्य गुण हैं वहाँ एक दोष भी है। अगर इसे काम न मिले तो मालिक को खाने दौड़ता है। सेठ ने विचार किया कि मेरे तो सैकड़ों व्यवसाय हैं, विलायत तक कारोबार है। यह भूत मर जाएगा पर काम खत्म न होगा। यह सोचकर उसने भूत खरीद लिया।
भूत तो भूत ही था। उसने अपना चेहरा फैलाया बोला- काम! काम! काम! काम!
सेठ भी तैयार ही था। तुरंत दस काम बता दिए। पर भूत उसकी सोच से कहीं अधिक तेज था। इधर मुंह से काम निकलता, उधर पूरा होता। अब सेठ घबरा गया। संयोग से एक संत वहाँ आए। सेठ ने विनयपूर्वक उन्हें भूत की पूरी कहानी बताई। संत ने हँस कर कहा- अब जरा भी चिंता मत करो। एक काम करो। उस भूत से कहो कि एक लम्बा बाँस लाकर, आपके आँगन में गाड़ दे। बस, जब काम हो तो काम करवा लो, और कोई काम न हो, तो उसे कहें कि वह बाँस पर चढ़ा और उतरा करे। तब आपके काम भी हो जाएँगे और आपको कोई परेशानी भी न रहेगी। सेठ ने ऐसा ही किया और सुख से रहने लगा। यह मन ही वह भूत है। यह सदा कुछ न कुछ करता रहता है। एक पल भी खाली बिठाना चाहो तो खाने को दौड़ता है। श्वास ही बाँस है। श्वास पर नामजप का अभ्यास ही, बाँस पर चढ़ना उतरना है।
आप भी ऐसा ही करें। जब आवश्यकता हो, मन से काम ले लें। जब काम न रहे तो श्वास में नाम जपने लगो। तब आप भी सुख से रहने लगेंगे।
अनंत सागर
प्रेरणा (भाग तीसरा)
21 मई 2020, उदयपुर
Give a Reply