पाठशाला में आज बात करते हैं गुरु की… हमारी सामान्य मान्यता है कि जो हमे पढ़ाते है, शिक्षित करते हैं या फिर धर्म के क्षेत्र व्रत नियम देते है वे गुरु होते हैं। पर इन सब से पहले जो हमारे गुरु हंै वे हमारे माता-पिता हैं जिन्होंने हमे जन्म दिया। जन्म तो दूर की बात जिस दिन से हम गर्भ में आते है उसी दिन से मां प्रभु से अपने लिए कुछ नही मांगती। उसकी हर पूजा, आराधना, दुआ बच्चे के लिए होती है। इतना नहीं मां का भोजन, उठना, बैठना, सुनना, बोलना सब बदल जाता है। वह ऐसा कोई काम नहीं करती, जिससे हमें गर्भ में कोई तकलीफ हो। हमारे गर्भ में आने के बाद से ही उसकी मौज मस्ती सब छूट जाती है।
यही नहीं कमरे का नक्शा बदल जाता है, दीवारों के चित्र, रंग सब बदल जाते हैं। जन्म के बाद तुम कब मूत्रादि करोगे किसी को पता नहीं। तुमने बिस्तर गीला कर दिया तो वह खुद गीले में सो जाएगी, लेकिन तुम्हें सूखे में ही सुलाएगी। तुम्हें भोजन में, पीने में क्या अच्छा लगता है, इस सबका पूरा ध्यान वह रखती है। उसके बैग में दूध, पानी, बिस्किट सहित तुम्हारे लिए ना जाने क्या-क्या मिल जाएगा। जो हम बोलते नहीं है, उसे भी मां बिना बताए समझ जाती है। जैसे-जैसे बड़े होते जाते हैं मां का प्यार बढ़ता जाता है। हमारी अच्छी शिक्षा के लिए वह ना जाने कहां-कहां घूमती है। जब हमें दोस्तों के साथ घूमने जाना होता है तो पिता ने जो पैसा दिया उसके अलावा माँ अलग से पैसा देती है ताकि हम अपने दोस्तों के साथ अच्छे से घूम सकें। बड़े हो जाएं तो अच्छी सी नौकरी मिल मिल जाए, व्यापार शुरू हो जाए, अच्छी बहू मिल जाए, पोते-पोती हो जाएं……यानी मां तब तक बच्चों के लिए सोचती रहती है, जब तक कि उसे प्राण नहीं निकल जाते।
अब आप ही बताओ मां से बड़ा गुरू कौन है जो जीवन भर हमारे लिए सोचती है, हमें हर चीज सिखाती है और हमारी हर कामयाबी पर खुश होती है। संसार मंे मां से अधिक हमारे लिए कोई नही सोच सकता है। मां हमारे जीवन की चलती फिरती विश्वविद्यालय है। जितना मां हमारे लिए करती है उतना कोई नही कर सकता है…..पर जब हम बड़े हो जाते हैं तब स्वत्रंतता के नाम पर मां को यह बोल देते हैं कि मां मैं अब स्वतंत्र हूं। मुझे जो करना है वही करूंगा…. जरा सोचो, तब उस मां पर क्या बीतती होगी। मां से जब हम यह कहते हैं कि…..जो तुमने मेेरे लिए किया, वह तो तुम्हारा कर्तव्य था….तो सोचो मां का दिल कैसा दुखता होगा। वह तो जीते जी मर जाती है।
बच्चों मां ही दुनिया की वह ताकत है जो हमारे लिए ईश्वर से भी लड़ सकती है। इस का ध्यान रखो कि….दुनिया में सब कुछ चला जाए पर मां का आशीर्वाद हमारे ऊपर हमेशा बना रहे। मां को तो ईश्वर से भी बड़ा दर्जा दिया गया है। मां के चरण स्पर्श से दुनिया का हर काम सफल हो जाता है। दुनिया मे कुछ मिले या ना मिले पर मां का आशीर्वाद सदा बना रहे।
अनंत सागर
पाठशाला
(सत्ताईसवां भाग)
31 अक्टूबर 2020, शनिवार, लोहारिया
अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज
(शिष्य : आचार्य श्री अनुभव सागर जी)
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