भक्तामर विधान के माध्यम से भगवान आदिनाथ की अर्घ्य, दीपक,नैवैद्य से पूजन
भीलूड़ा। अन्तर्मुखी पूज्य सागर महाराज के 48 दिवसीय मौन साधना के अंतिम दिन सुबह चार बजे से भक्तामर विधान के अंतर्गत अर्घ्य, दीपक,नैवैद्य से भगावान आदिनाथ की पूजन किया गया। चौबीस तीर्थंकर का पूजन, तीर्थंकर के 1000 हजार नाम मन्त्रो की आहुति और अर्घ्य चढ़ाए गए, 56 पकवानों से भी आराधना की गई। उल्लेखनीय है कि अन्तर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज 5 अगस्त से 21 सितम्बर तक लगातार की मौन साधना कर रहे हैं। मुनि श्री के साथ इस आराधना में क्षुल्लक अनुश्रमण सागर महाराज और समाज के अन्य लोग शामिल होते थे। इन 48 दिनों में मुनि श्री के द्वारा कई प्रकार के मंत्रों का जाप किया गया।
तुष्टि जैन ने बताया कि मुनि श्री 12 वर्षों से इस प्रकार की 48 दिन की साधना कर रहे हैं। मुनि श्री ने इस साधना का प्रारंभ श्रवणबेलगोला से किया था, तब वह क्षुल्लक अतुल्य सागर महाराज के नाम से जाने जाते थे। मुनि श्री को इस साधना की प्रेरणा श्रवणबेलगोला के भट्टारक चारुकीर्ति स्वामी को देखकर मिली। वह भी मौन साधना करते थे। उनसे प्रेरित होकर मुनि श्री ने भी यह साधना प्रारम्भ कर दी। मुनि श्री मौन साधना के साथ एक उपवास और एक दिन अन्न के त्याग के साथ आहार ग्रहण करते थे। इन 48 दिनों में 24 उपवास और 24 दिन अन्न का त्याग रहा। आचार्य सुंदर सागर महाराज,आचार्य अनुभव सागर महाराज के आशीर्वाद से यह साधना मुनि श्री ने पूरी की है।
अन्तर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज प्रतिदिन मौन साधना में मुनि जाप, हवन,पाठ,भक्ति, लेखन से अपने भावों को निर्मल करते थे। दैनिक भास्कर, डूंगरपुर ने मुनि श्री के 48 दिन के चिंतन को प्रतिदिन प्रकाशित किया जो संग्रहणीय है। इसी क्रम में समाज के 48 परिवारों ने भी भक्तामर विधान कर 2,688 अर्घ्य भगवान आदिनाथ को समर्पण किए। मुनि श्री की मौन साधना आज पूर्ण हो जाएगी, पर अन्य साधना का क्रम जारी रहेगा। मुनि श्री की इस साधना में, समाज द्वारा 48 दिन की जो आराधना की जा रही है, वह भी 25 सितम्बर को पूर्ण होगी।
आने वाले दिनों भीलूड़ा जैन समाज द्वारा और गुरुभक्ति द्वारा मुनि श्री के मार्गदर्शन में इस साधना महोत्सव कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा। महाराज जी उसी दिन अन्न ग्रहण करेंगे। मौन साधना का अनुभव मुनि श्री स्वयं अपनी कलम से आने वाले दिनों में बताएंगे।
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