कालचक्र में कब कौन किसे छोड़ कर चला जाए यह कहना मुश्किल है। जाना तो सब को एक दिन है लेकिन किसी का असमय जाना दुःख का कारण और समाज के लिए क्षति का कारण बन जाता है। 8 दिनों में दिगम्बर जैन समाज के तीन बड़े आचार्यों का समाधिमरण हो गया। आचार्य श्री ज्ञान सागर जी महाराज, आचार्य श्री निर्मल सागर महाराज जी , आचार्य श्री रयण सागर महाराज जी। तीनो आचार्यों का समाज के विकास के लिए बड़ा योगदान रहा है। तीनों आचार्यों के जाने से कई श्रावक, समाज, संस्थान अपने आप को अनाथ महसूस कर रहे हैं। यह भी सच है कि तीनों आचार्यों की जगह कोई नही ले सकता है। तीनो आचार्यों के धर्म प्रभावना, समाज विकास के लिए अलग अलग कार्य थे।
समाज को अब सजग होने की आवश्यकता है। इतनी बड़ी क्षति होने के बाद समाज को संतो के स्वास्थ्य, विहार, आहार और निहार के प्रति सजग होने की आवश्यकता है। कहते हैं ठोकर लगने के बाद अकल आ जाती है। इन तीन आचार्यों के अलावा भी कई ऐसी घटनाएं घटित हुई हैं जिससे संतो और धर्म की हानि हुई है। धर्म प्रभावना और संत सेवा के लिए अब कषायों को छोड़कर, व्यक्तिगत धारणा को छोड़कर, व्यक्तिगत राग द्वेष को छोड़कर, संतवाद, पंथवाद को छोड़कर एक होना जरूरी है। कई बिखरी संस्थाएं एक हो जाएं। पूजा पद्धति को अलग कर एक बार विचार, चिंतन, मनन करें कि इन सब से हानि किसकी हो रही ? आने वाले समय में जैन समाज का इतिहास कई भागों में बंटा हुआ दिखाई देगा। हम किस बात पर लड़ रहे हैं? हम जिस जिनवाणी की वंदना करते है, पूजन करते है जब उसमें भी विवादों से दूर रहने के लिए अनेकांत, स्याद्वाद का कथन किया है तो फिर उसकी बात मानकर हम एक साथ क्यों नही होना चाहते है। क्यों हम धर्म, समाज, संतों की हत्या के दोषी बन रहे हैं।
अनंत सागर
अंतर्मुखी के दिल की बात
(चौतीसवां भाग)
23 नवम्बर, 2020, सोमवार, बांसवाड़ा
अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज
(शिष्य : आचार्य श्री अनुभव सागर जी)
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