भीलूड़ा/सागवाड़ा/डूंगरपुर – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज ने सोमवार को शांतिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर भीलूडा में महिला दिवस पर विशेष प्रवचन करते हुए कहा कि माँ से बढ़कर संसार में ईश्वर भी नही होता। ईश्वर को जन्म देने वाली भी मां ही होती है। परमात्मा की भक्ति तुमसे हो ना हो पर सुबह-सुबह मां के चरणों का स्पर्श जरूर कर लेना चाहिए, क्योंकि दुनिया में मां का रिश्ता सबसे पवित्र और निर्मल होता है।
मुनिश्री ने कहा की जीवन में दु:ख, अशांति है, घर का वास्तु ठीक नही और ग्रहों की दशा ठीक नही चल रही है तो मां के चरणों का स्पर्श कर लेना और अगर मां नही होती तो मां के चरण बनाकर घर में रख लेना। सुबह-सुबह उनका स्पर्श कर लेना, सब दु:ख दूर हो जाएंगे।
मुनिश्री ने कहा कि मां की ममता और वात्सल्य इतना होता है कि उसके अंदर शक्ति नही फिर भी वह दुनिया से लड़ने को तैयार हो जाती है। दुनिया में मां ही एक ऐसी है जो अपने बच्चे के बारे में पति से झूठ बोलकर बच्चे को पिता और परिवार के लोगो से बचाती है। यानी जिसे वह अपना परमात्मा मानती है बच्चे के लिए उससे भी झूठ बोल देती है।
मां भगवान की पूजन, वंदन और ध्यान करती है तो वहां पर भी अपने बच्चों के लिए ही सुख, शांति मांगती है। बच्चे की गलती होने पर वह अकेले में भले ही बच्चे को डांट ले, लेकिन दूसरों के सामने तो यही कहेगी कि मेरे बच्चे की गलती नही है। वह कभी भी अपने बच्चे को किसी के सामने शर्मिंदा नही होने देती है।
दुनिया में मां का महत्व तो वही बता सकता है जिसे मां का प्यार नहीं मिला हो। जो बचपन से अनाथ रहा हो, जिसने मां के हाथ का भोजन नही किया हो, जिसके दु:ख दर्द को पूछने के लिए मां ना हो। वह तुम्हे मां का महत्व समझा सकता है। मां पुण्यशाली व्यक्तियों को ही मिलती है।
उन्होंने कहा कि जीने के लिए श्वास, पेट के लिए भोजन की आवश्यकता होती है उसी तरह जीवन में मां की आवश्यकता होती है। जीवन में अनुभवों का खजाना मां से ही मिलता है। दुनिया से लड़ने की शक्ति और जीने जी कला मां ही सिखा सकती है।
महात्मा, परमात्मा जैसे शब्दो के अंत में भी मां शब्द ही आया है। जिससे यह पता चलता है कि मां कितनी पवित्र आत्मा है। विद्या के लिए सरस्वती, धन के लिए लक्ष्मी और शक्ति के लिए दुर्गा की पूजन आराधना होती है। यह भी सब मां का ही स्वरूप हैं।
मुनिश्री ने कहा कि बच्चा जब मां के गर्भ में आता है उस दिन से मां दुनिया से, अपनी पसंद ना पसंद सबसे नाता तोड़ लेती है। वह अपने उठने बैठने तक को सीमित करने के साथ क्या खाना, क्या नही खाना यह भी बच्चे की सेहत के अनुसार ही करती है। अपने आसपास के दीवार पर लगे चित्र तक बदल देती है जिससे की बच्चे पर बुरा प्रभाव ना पडे़े।
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