पाठशाला में आज बात करेंगे आर्त्तध्यान की । आर्त्त का मतलब है-पीड़ा या दुःख । प्रिय मनुष्य या वस्तु के वियोग और अप्रिय मनुष्य या वस्तु के संयोग से होनेवाली मानसिक विकलता की स्थिति में जो चिन्तन होता है,वह आर्त्तध्यान कहलाता है । वेदनाजनित आकुलता और विषयसुख की प्राप्ति के लिए किया जाने वाला दृढ़ संकल्प भी इसी ध्यान का अंग है । व्याकुलता,छटपटाहट और अधीरता आर्त्तध्यान की निष्पत्तियां हैं । आर्त्तध्यान के चार भेद हैं ।
इष्टवियोग: प्रिय मनुष्य या वस्तु के वियोग होने उसकी प्राप्ति के लिए होनेवाली वियोगजन्य विकलता ।
अनिष्टसंयोग: अप्रिय मनुष्य या वस्तु के संयोग होने पर से दूर करने के लिए होने वाली संयोगजन्य विकलता ।
पीड़ा चिंतन: वेदनाजन्य आतुरता,छटपटाहट ।
निदान: भावी भोगों की आकांक्षाजन्य आतुरता ।
अनंत सागर
पाठशाला (त्रेपनवां भाग)
1 मई,शनिवार 2021
भीलूड़ा (राज.)
Give a Reply