बच्चों आप कैसे हो, ठीक हो ना। आज मैं आप से एक बात शेयर कर रहा हूं। आप सबने भी इसका अनुभव किया होगा। जितना व्यक्ति पढ़कर नही सीखता है उससे कहीं जादा सुनकर और देखकर सीखता है। आप लोग फिल्मी गाने कभी पढ़ते नहीं हो फिर भी याद हो जाते हैं, क्योंकि आप बार बार उन्हें सुनते हो। आप बाजार जाते हो तो क्या घर से रास्ते के बारे में पढ़ कर जाते हो, नहीं ना, चलो एक बात बताओ आपको बचपन में किसी ने बोलना सिखाया, खाना सिखया, नहीं ना, तो वह सब कैसे सीख गए? देख और सुन कर ही तो आप सब कुछ सीखे हो। यह सब हमें याद क्यों रहता है, क्यों कि जब कभी भी आपने यह सब सुना होगा या देखा होगा तो उस समय आपका ध्यान वहीं होगा। कभी – कभी ऐसा भी होता है कि आप जहां बैठे हो वहां क्या हुआ यह आप को ध्यान नहीं रहता है, पर बार- बार वही बात सुनते हो तो कभी ना कभी आपको वो बात याद आ ही जाती है।
लेकिन आज यह स्थिति धर्म, संस्कार और संस्कृति के बारे में देखने को नहीं मिलती, क्योंकि इनके बारे में हम कभी देखते या सुनते ही नहीं हैं।
अब ध्यान से सुनना मैं क्या कहने जा रहा हूं। बच्चों आज आपको धर्म के बारे में कुछ पता नही। संस्कार, संस्कृति के बारे में पता नहीं। क्या करें क्या नही करें, क्या खाएं क्या नही खाएं, क्या पहनें क्या नहीं पहनें, इन सब का बोध नहीं है। हम जो भी कर रहे वह दूसरों को देख सुन कर करते जा रहे हैं। हमारा जीवन अपना नही है। हमारे जीवन पर अनेक व्यक्तियों का प्रभाव पड़ रहा है। कई बार इसीलिए हमें अच्छे बुरे की पहचान नही रही जाती। आप अपनी स्वयं की पहचान खो चुके हो।
अब यदि तुम खुद की पहचान बनाना चाहते हो तो आज से एक संकल्प करो कि अब प्रतिदिन मैं धर्म की बात सुनूंगा, देखूंगा, धार्मिक अनुष्ठानों में जाऊंगा और इसके बारे में पढूंगा। यह संकल्प करने से तुम्हें अपने आप को जानने का अवसर मिलेगा। तुम्हें अपनी पहचान मिलेगी। तुम अपनों से जुड़ोगे। यह जो मनुष्य भव मिला है इसका सही उपयोग कर अपने आप को जानो। ज्ञान का सही उपयोग करो। फिर जो तुम्हें मिलेगा वह और कहीं नहीं मिलेगा। एक बार कर के देखो क्या अनुभव होता है आपको, फिर बताना।
अनंत सागर
पाठशाला
(चौबीसवां भाग)
10 अक्टूबर 2020, शनिवार, लोहारिया
अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज
(शिष्य : आचार्य श्री अनुभव सागर जी)
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