यह ऐसी कहानी है, जो बच्चों के साथ-साथ उनके माता–पिता को भी अच्छी सीख देती है। बच्चे बड़े ही कोमल व संवेदनशील होते हैं। कई बार आप एक अभिभावक के रूप में यह तय नहीं कर पाते हैं कि स्वतंत्रता की रेखा कहां खींचनी चाहिए। यह कहानी बताती है, उन चुनौतियों के बारे में, जब आप किसी काम को खुद से करने की चेष्ठा करते हैं।
दो पड़ोसियों को अपना–अपना बगान था। वे दोनों उनमें पौधे उगाते थे। उनमें से एक पड़ोसी बहुत सख्त था। अपने पौधों की जरूरत से ज्यादा देखभाल करता था। दूसरा पड़ोसी, उतना ही करता था जितने की आवश्यकता थी। लेकिन वह अपने पौधे की पत्तियों को उसकी मन–मर्जी की दिशा में बढ़ने देता था।
एक शाम बड़ा तूफान आया और भारी बारिश हुई। तूफान ने कई पौधों को नष्ट कर दिया। अगली सुबह, जब सख्त पड़ोसी उठा तो उसने पाया कि उसके सारे पौधे उखड़ गए हैं। वे बर्बाद हो गए। वहीं, जब दूसरा पड़ोसी उठा तो उसने पाया कि उसके पौधे अभी भी मिट्टी में मजबूती से लगे हुए हैं, इतने तूफान के बावजूद।
दरअसल, वह पड़ोसी का पौधे को खुद ही चीजें करना सीखा गया था। इसलिए, उसके पौधे ने स्वयं अपना काम किया। गहरी जड़ें उगाईं और मिट्टी में अपने लिए जगह बनाई। इस प्रकार यह तूफान में भी मजबूती से खड़ा रहा। जबकि, सख्त पड़ोसी ने अपने पौधों का जरूरत से ज्यादा खयाल रखा था। शायद वह इस बात को सिखाना भूल गया कि बुरे समय में खुद का खयाल कैसे रखते हैं।
इस कहानी से सीख मिलती है कि आपको खुद से ही सब कुछ करना होगा। जब तक माता–पिता अत्यधिक सख्त होना बंद नहीं करते, तब तक बालक अपने आप काम नहीं करेगा। स्वयं को मजबूत नहीं कर पाएगा।
H2- अनंत सागर
24 सितम्बर, गुरुवार 2020, लोहारिया
प्रेरणा
(इक्कीसवां भाग)
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