मुनि पूज्य सागर की डायरी से
मेरे जीवन का अनुभव है कि पुरुषार्थ जीवन की हर मुश्किल से लड़ना और अपनी सही दिशा तय करना सिखा देता है। जीवन में लक्ष्य के साथ पुरुषार्थ करने वाले व्यक्ति की सफलता कदम चूमती है। जीवन में कई आपदाएं और बाधाएं आती हैं हैं, लेकिन जो पुरुषार्थ से इनका सामना करता है, वह व्यक्ति को मजबूत बना देता है। मेरा यह मानना है कि असफल होने पर यदि व्यक्ति अपनी गलती और कमजोरी को स्वीकार कर लेता है तो वह असफलता के अनुभव को प्राप्त करता हुआ सफलता की ऊंचाईयां हासिल कर लेता है। जीवन में वह व्यक्ति पुरुषार्थ नहीं कर सकता, जिसका मन और मस्तिष्क संकुचित हो और अपने से बड़ों की बातों को अनदेखा करता हो। ऐसा व्यक्ति अपने भाग्य का भी उपयोग नहीं कर पाता।
मैंने यह देखा भी है कि जो व्यक्ति पुरुषार्थ नहीं करता, वह सदैव दूसरों की निन्दा करने में ही लगा रहता है। ऐसा करके वह खुद के भाग्य को तो खराब करता ही है, साथ में जीवन में लिखे पुण्य को भी प्राप्त नहीं कर पाता। वह निन्दा का पात्र बना रहता है और आपदाओं से घिरा रहता है। आपदाएं व्यक्ति को कमजोर बनाती हैं। साथ ही व्यक्ति के मन और मस्तिष्क को भ्रमित भी करती हैं। उसे जीवन में सही दिशा भी दिखाई नहीं देती। उसकी सोच-विचार की शक्ति भी कमजोर हो जाती है। ऐसा व्यक्ति भाग्य के भरोसे बैठकर परमात्मा की भक्ति भी नहीं कर सकता।
मैं अल्पआयु में आलसी स्वभाव का था। मैं हमेशा यही सोचा करता था कि जो भाग्य में लिखा है, वही होगा। इस धारणा की वजह से मैं धर्म- कर्म कुछ भी नहीं करता था और तब तक जीवन में कुछ कर भी नहीं पाया। जब मैंने जीवन में पुरुषार्थ का महत्व समझा और पुरुषार्थ करना शुरू किया तो खुद को ही बदल डाला। मेरे मन और मस्तिष्क की धारणाएं बदल गईं। धर्म-कर्म से जुड़ गया और वर्तमान में अपने आप को वहां तक ले आया हूं जहां मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। पुरुषार्थ से ही आत्मशक्ति जाग्रत होती है।
गुरुवार, 19 अगस्त, 2021 भीलूड़ा
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