सीता ने जिस प्रकार दान की इच्छा जताई थी, उसी प्रकर दिया गया। लक्ष्मण ने राम से जो वार्ता की, उसका वर्णन पद्मपुराण पर्व 99 आया है। आओ जानते हैं हम भी उस वर्णन को…
कुतान्तवक्त्र ने जब राम को कहा कि सीता को जंगल में छोड़ आया हूं, उस समय राम चिंतन कर रहे थे। तभी लक्ष्मण राम से कहते हैं- भाई, व्याकुलता क्यों कर करते हो। धैर्य धारण करो। पूर्व में किए कर्म का फल समस्त लोक को प्राप्त होता है, न कि राजपुत्री सीता को ही प्राप्त हुआ है। जिसे संसार में सुख और दुःख मिलना है, उन्हें अपने आप मिल जाता है। इस संसार में जिस प्राणी की रक्षा होती है, वह पुण्य से होती है। सीता के परित्याग का समाचार सुनकर इस समस्त पृथ्वी पर साधारण से साधारण मनुष्य भी दुःखी होकर आंसू बहा रहा है। लक्ष्मण भी दुखी तो थे ही, उसने भी कहा- सीता के बिना अयोध्या सूनी है। इस प्रकार से अनेक सांत्वनाभरे वचन लक्ष्मण ने कहे। उसके बाद राम ने कहा कि सीता जैसा चाहती थी कि उसी तरह दान दिया जाए। राम ने भद्रशाला नामक खजांची को बुलाकर आदेश दिया, सीता ने जैसा तुम्हें पहले दान देने का आदेश दिया था, उसी विधि से उसी प्रकार लक्ष्य कर दान दिया जाए। इस प्रकार के आदेश के बाद 9 माह तक याचकों को इच्छित दान देना चलता रहा। राम ने श्रावक धर्म का कर्तव्य निभाया और सीता के कहे अनुसार दान आदि के कार्य निरन्तर जारी रखे।
अनंत सागर
श्रावक
30 जून 2021,बुधवार
खोड़न (राज.)
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