पद्मपुराण में रावण को लेकर एक प्रसंग आता है। वह प्रसंग यज्ञ को लेकर है उस हिंसक यज्ञ को रुकवा कर रावण ने श्रावक के धर्म का निर्वाह किया था।
प्रसंग इस प्रकार है:
रावण के पास एक दूत आता है और समाचार देता है कि राजा मरुत्व संर्वत ब्राह्मणों के साथ मिलकर हिंसक यज्ञ कर रहा है, जिसमें निरीह पशुओं की बलि दी जानी है। ऐसा न करने को जब नारद उन्हें समझाने पहुँचे तो राजा ने उनके साथ भी मारपीट कर दी। यह सुनते ही रावण अपनी सेना के साथ यज्ञ भूमि पर पहुँच गया।
रावण ने वहाँ हो रही हिंसा के खिलाफ आवा़ज उठाई। राजा और ब्राह्मणो को समझाया। जब वो नहीं माने तो रावण की सेना ने उन्हें दण्ड दिया और फिर उन्हें समझाया कि जब तुम्हें इस दण्ड से तकलीफ हो रही है तो सोचो यज्ञ में पशुओं की बलि देने पर क्या उन्हें कष्ट नहीं होता होगा। किसी भी प्राणी को कष्ट देने वाली कोई क्रिया धर्मसम्मत नहीं हो सकती। अगर रावण हिंसक यज्ञ नही रोकता तो बड़ा अनर्थ हो सकता था।
आज हम देख रहे है कि चमड़े आदि से बने सामान फैशन के नाम पर इस्तेमाल किए जा रहे हैं। हमें रावण से प्रेरणा लेना चाहिए कि जहां पर भी हिंसा का तांडव हो वहां जाकर उसे रोकना चाहिए।
अनंत सागर
प्रेरणा
इकचालीसवां भाग
11 फरवरी 2021, गुरुवार, बांसवाड़ा
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