मुनि पूज्य सागर की डायरी से
मौन साधना को 19 दिन हो गए हैं। साधना से मुझे जीवन में आत्मशांति का पूर्ण अनुभव हो रहा है। मानो- बाहरी बातों से मुक्ति मिल रही है। जैसे-जैसे शरीर से आत्मा का सम्बंध कम होता जा रहा है, मानो मुक्ति की तरफ स्वत: ही तेजी से कदम बढ़ते जा रहे हैं। मैं अपने आपकी गहराई में उतर रहा हूं और बाहरी आडम्बरों से दूर हो रहा हूं। मन में हरेक प्राणी के प्रति करुणा और दया का भाव बन रहे हैं। हालांकि, यह किसी को दिखाई नहीं देगा। यह तो मैं ही महसूस कर सकता हूं।
साधना में किताबी ज्ञान का कोई महत्व नहीं होता, यह भी अहसास हो गया है। मेरी यह साधना मेरा भविष्य का भाग्य बना रही है। वर्तमान की साधना से ही मेरे भविष्य की तस्वीर तैयार होगी और अब यही मेरा वर्तमान है। मैं तो यह समझ गया हूं कि साधना वर्तमान में जीने का संदेश देती है। यह वर्तमान ही आगे भूत और भविष्य बनेगा। यह भी बात सही है कि साधना ही वह साधन है जिससे वर्तमान को सुधारा जा सकता है। यह बात मैंने अच्छी तरह से महसूस कर ली है कि केवल किताबें पढ़कर आत्मसाधना नहीं की जा सकती है। किताबी ज्ञान से तो केवल आत्मसाधना के मार्ग को समझा ही जा सकता है। आत्मा के अलावा शरीर, ज्ञान जो भी है वह सब कर्मजनित है। साधना में जाप, चिंतन, ध्यान और अनुष्ठान जरूरी है। यह सब साधना तक पहुंचने का मार्ग है। यह पूर्णत: साधना भी नहीं है। पुरानी बातें स्मरण में आना ही पुण्य और पाप कर्म जनित है। यह दोनों ही सांसारिक जीवन से निकलने नहीं देते। पुण्य सुख के साथ और पाप दु:ख के साथ संसार में घुमाते हैं लेकिन पुण्य तो साधना में ही है। यह ऊर्जा और अनुकूल वातावरण बनाने का काम करती है। मैं साधना कक्ष में घंटों अकेले बैठे रहता हूं। सिर्फ और सिर्फ दीपक से जलती लौ ही नजर आती है। भीतर इसके सिवाय कोई विचार नहीं आते और न ही किसी से मिलने का मन करता है। पहले दिन कक्ष में घुटन महसूस कर रहा था और अब कक्ष के बाहर घुटन और घबराहट होती है।
सोमवार, 23 अगस्त, 2021 भीलूड़ा
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