सम्यक दर्शन अर्थात सकारात्मक सोच के बिना जीवन का हर कार्य निष्फल है और सम्यक दर्शन के लिए जरूरी है हर भव में गुरू का आशीर्वाद और मार्गदर्शन मिलना। हम स्वयं कितने ही योग्य हों, लेकिन हमारी क्षमताओं और प्रतिभा को यथार्थ रूप गुरू के आशीष और उनकी ’शिक्षाओं से ही मिल पाता है। जब तक हमारे जीवन मे गुरु नहीं होंगे, तब तक जीवन में ज्ञान का उजियारा नहीं होगा और ना ही अशुभ कर्मों का नाश होगा।
गुरू एक कुम्हार की भांति है जो हमारे जीवन कलश को आकार और साकार रूप देकर उसमें ज्ञान का सागर भर देता है। वह धोबी की तरह हमारे जीवन के मैल को दूर कर हमारे चरित्र को सम्यकत्व से भर देते हैं। जिस प्रकार धोबी कपड़े में से गंदगी निकालने के लिए उसे पत्थर पर पीटता है, निचोड़ता है और चमकाने के लिए अन्य उपाय करता है, उसी तरह गुरू भी जीवन में सम्यक दर्शन की चमक पैदा करने के लिए अपने ’शिष्य के जीवन से काम, क्रोध, लालच, राग-द्वेष जैसी मलिनता को दूर कर उसे हीरे की तरह तराशता है।
गुरु शिष्य के भीतर से कर्म रूपी गंदगी निकालकर उसे सशक्त बनाने का प्रयास करता है। उसे त्याग, तप, आराधना-प्रार्थना, स्वाध्याय आदि के माध्यम से परिष्कृत कर सकारात्मक सोच की ओर उन्मुख करता है। साथ ही उसकी सामथ्र्य के अनुसार उसकी परीक्षा लेता है, लेकिन सवाल यह भी है कि गुरू कैसा हो।
आचार्य समन्तभ्रद भ्रद स्वामी ने रत्नकरण्ड श्रावकाचार में गुरु का स्वरूप बताते हुए कहा है कि
विषयाशा -वशातीतो निरारम्भोऽपरिग्रहः
श्ज्ञानध्यानतपोरत्नस्तपस्वी स प्रशस्यते ॥10॥
अर्थात – जो विषयों की आशाओं के वंश से रहित, आरम्भों से रहित, परिग्रहों से रहित और ज्ञान, ध्यान तथा तप में लीन हो वह गुरु प्रशंसनीय है।
कहने का अभिप्राय है दिखने में शांत-सौम्य हो, व्यवहार में सहज-सरल हो तथा संसार को बढ़ाने वाले पदार्थों और कर्मों से उदासीन हो वही सही मायनों में गुरू हो सकता है। पंचेन्द्रिय विषयों एवं स्त्री आदि की आशा तथा खेती, व्यपार, पशुपालन आदि से रहित हो। धन-धान्य, नौकर, वाहन, ब्राह्य परिग्रह से और क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा आदि से रहित हो और जो स्वाध्याय के द्वारा ज्ञान को बढ़ाकर मन, वचन और काया की चंचलता पर नियंत्रण कर आत्म चिंतन करता हो और शरीर अनशन, उनोदार, विनय, ध्यान आदि करता हो वही सच्चा गुरु हो सकता है। ऐसे गुरु की श्रद्धा और भक्ति करने पर ही कर्मों की निर्जरा हो सकती है और सम्यक दर्शन की प्राप्ति हो सकती है। मूल सार यही है कि हमें जीवन में इन सद्गुणों से युक्त गुरू का सान्निध्य अवश्य प्राप्त करना चाहिए, तभी हम जीवन को सफल बना सकेंगे।
अनंत सागर
श्रावकाचार (नवां दिन)
रविवार , 9 जनवरी 2022, बांसवाड़ा
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