शुभ और अशुभ कर्मफल कब उदय में आ जाए, कोई नहीं जानता। पद्मपुराण पर्व 96 में सीता के जीवन से सम्बंधित प्रसङ्ग है जिसमें उसे अपने साथ अशुभ होने का संकेत मिला। आओ जानते हैं, क्या था वह अशुभ संकेत ..
गर्भधारण का पता चलने के बाद जब सीता महेन्द्रोदय उद्यान में राम के साथ जिनेन्द्र पूजा करने गईं थीं, उस समय पूजन के बाद सीता की दाहिनी आंख फड़कने लगी। सीता ने सोचा, यह तो अशुभ संकेत है। मैं ऐसा क्या पाप किया कि इतने दुःख उठाने के बाद यह फिर अशुभ संकेत क्यों आया है। सीता ने अपनी सखियों से चर्चा की। किसी भी अशुभ घटना से बचने के लिए शांतिकर्म करना तय हुआ। दान, पूजा,अभिषेक और तप अशुभ कर्मों को नाश करने वाले हैं। दान विघ्नों का नाश और शत्रुओं का वैर दूर करने वाला है, पुण्य का उपादान है तथा बहुत बड़े यश का कारण है। सीता ने भद्रशाला नामक कोषाध्यक्ष को बुलाया और कहा, प्रसूति पर्यन्त प्रतिदिन किमिच्छक दान दया जाए। यह कहकर सीता जिनपूजा आदि में निमग्न हो गईं। जिनेन्द्र भगवान के चरित्र को बताने वाले चित्र लगाए गए। दूध, घृत आदि से भरे कलश रखवाए गए। इधर, राज्य में घोषणा की गई कि जिन्हें जो चाहे, वह दान मिलेगा। सीता ने भी अपनी शक्ति के अनुसार नियमग्रहण किया और उत्तम महापूजाएं और अभिषेक किए। पर खेल देखो- इसी समय सीता को वनवास भेजने की चर्चा चल रही थी।
अनंत सागर
कर्म सिद्धांत
15 जून 2021, मंगलवार
भीलूड़ा (राज.)
Give a Reply