सम्यग्दृष्टि मनुष्य सदैव सच्चाई के मार्ग पर चलता है। वह कैसा भी समय हो, कैसी भी परिस्थिति हो, हमेशा धर्म के अनुरूप आचरण करता है। वह यह नहीं सोचता कि समय के अनुसार नहीं चलने पर लोग उसे मूर्ख समझेंगे। वह समाज या समय में बदलाव के अनुरूप अहिंसा, संयम, त्याग आदि का पालन नहीं छोड़ता। जैसे कई व्यक्ति यह कहते हैं कि समय के अनुसार चलना पड़ता है और इसके चलते वे रात्रि भोज, अर्मादित वस्त्र धारण करना सहित धर्म के प्रतिकूल आचरण करते हैं। इस आचरण के संबंध में समय और परिस्थिति का बहाना बनाते हैं, लेकिन सम्यक जीवन के सिद्धांत और नियम हर काल एवं परिस्थिति में प्रासंगिक होते हैं। वे बदलते नहीं है।
सम्यग्दृष्टि मनुष्य अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, त्याग आदि के मार्ग पर चलते हुए अपने मन एवं भावों को निर्मल बनाता है। किसी भी लालच में आकर रागी-द्वेषी, हिंसक, असंयमी आदि की विनय नहीं करता। ना ही धर्म विरूद्ध मार्ग का अनुसरण करता है, बल्कि सदैव स्मयक ज्ञान, चारित्र और दर्शन के मार्ग को अपनाकर स्वयं और अन्य के कल्याण में सहभागी बनता है।
आचार्य समन्तभ्रद भ्रद स्वामी ने रत्नकरण्ड श्रावकाचार में सम्यग्दर्शन के आठ गुणों में से आठवें प्रभावना अंग का स्वरूप बताते हुए कहा है कि –
अज्ञानतिमिर-व्याप्ति, मपाकृत्य यथायथम्।
जिनशासन-माहात्म्य प्रकाशः स्यात्प्रभावना ॥18॥
अर्थात- अज्ञानरूपी अन्धकार के विस्तार को दूरकर जैसे-तैसे अपनी शक्ति के अनुसार जिनशासन के महातम्य को प्रकट करना प्रभाव दिखाने रूप प्रभावना अंग है।
प्रभावना अंग अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करता है और सम्यग्दर्शन के मार्ग पर ले जाता है। साथ ही इस बात का ध्यान रखता है कि हमारा कोई आचरण ऐसा न हो कि उसके कारण धर्म का अपवाद होने का प्रसंग आ जाये। सम्यक दृष्टि सदा ऐसा आचरण करता है कि उसे देखकर लोग धर्म के प्रति आस्थावान होते हैं। रत्नत्रय के तेज से आत्मा को प्रभावित करता है और दान, तप, जिनपूजा और विद्या के अतिशय से जिनधर्म की प्रभावना बढ़ाता है। अभिप्राय है कि हमें कैसा भी समय या परिस्थिति हो, सदैव अपना आचरण धर्म के अनुरूप रखना चाहिए, न कि पथ भ्रमित व्यक्तियों के प्रभाव में आकर प्रतिकूल राह अपनानी चाहिए।
अनंत सागर
श्रावकाचार ( 17 वां दिन)
सोमवार , 17 जनवरी 2022, बांसवाड़ा
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