एक शेर तीर्थंकर महावीर बना । शास्त्र में आया है कि शेर सिंह हिरण का शिकार कर रहा था, उसी समय चारणऋद्धिधारी मुनि जयंत-विजयंत आकाश मार्ग से विहार कर रहे थे। उन दोनो ने नीचे देखा कि सिंह हिरण का शिकार कर उसे मुंह में दबाए हुए है तो वह धर्म भाव से नीचे उतरे और शेर को उपदेश दिया तो शेर के अंदर सम्यग्दर्शन की भावना जागृत हो गई। आंखों में आंसू आ गए। उसी समय उसने मुनि चरणों नियम कर लिया कि अब मांसाहार नही करूंगा। सूखे पत्ते खाऊंगा, वही पानी पियूँगा जो पानी अन्य पशु पीते हैं। शेर का भाव परिवर्तन हुआ और वह अगले कुछ में तीर्थंकर महावीर हुआ। अगर आप को यह समझने में शंका हो कि शेर कैसे ऐसा नियम कर सकता है तो अभी लगभग 100-150 वर्ष पहले जयपुर में अमरचंद्र दीवान ने शेर को जलेबी खिलाई थी। जब यह सम्भव है तो यह भी सम्भव है….
आचार्य समन्तभ्रद स्वामी ने रत्नकरण्ड श्रावकाचार में कहा है कि सम्यग्दृष्टि संसार के उत्कृष्ट और अंतिम जन्म को धारण करने वाले तीर्थंकर पद को प्राप्त करता है …
अमरासुरनरपतिभिर्यमधरपतिभिश्च नूतपादाम्भोजाः ।
दृष्ट्या सुनिश्चितार्था, वृषचक्रधरा भवन्ति लोकशरण्याः ॥39॥
अर्थात- सम्यग्दर्शन के माहात्म्य से जिन्होंने पदार्थ का अच्छी तरह निश्चय किया है। ऐसे सम्यग्दृष्टि जीव देवेन्द्रों, असुरेन्द्रों व नरेन्द्रों से और मुनियों के स्वामी गणधरों के द्वारा स्तुत चरणकमल वाले तीनों लोकों के शरणभूत ऐसे धर्मचक्र के धारक तीर्थंकर होते हैं।
प्रत्येक आत्मा परमात्मा है । इसलिए कहते हैं कण-कण में परमात्मा है। सम्यग्दर्शन के माध्यम से ही आत्मा से परमात्मा प्रकट करने की आवश्यकता है । सम्यग्दर्शन चारों गतियों में होता है। इसकी विशुद्धि मनुष्य आदि गति के अनुसार अलग अलग होती है। भाव को शुद्ध करने, पुण्य करने, त्याग करने, अहिंसा धर्म पालन और आत्म उत्थान की और आगे बढ़ने के लिए किसी भव(गति) की आवश्कता नहीं होती है। यह बात अलग है कि कुछ गति में वह त्याग करना चाहे तो नहीं कर सकता है, पर उसे सम्यग्दर्शन होता है। उसी के बल पर त्याग नहीं होने बाद भी उसके भाव हिंसा-पाप आदि करने के नहीं होते है। इतना जरूर है कि तीर्थंकर पद की प्राप्ति मनुष्य भव में मुनि बनकर ही होती है ।
अनंत सागर
श्रावकाचार ( 45वां दिन)
सोमवार, 14 फरवरी 2022, बांसवाड़ा
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