संसार में दुःख के अनेक कारण हैं, जिनके कारण हम असहाय हो जाते हैं। दुःखों से बचने के लिए जीवन में संसार के प्रत्येक प्राणी से मित्रता, प्रेम, वात्सल्य के भाव रखना होते हैं । जो भी चर्या हम करें, वह अपने आप को देखकर करना चाहिए न कि दूसरों को देखकर । सम्यग्दर्शन धर्म के सहारे जीवन में बिना नियम,संयम के भी प्राणी कई दुःखों से बच जाता है या यह कहें कि उसे दुःख आता भी है तो उस दुःख में भी वह सुख का अनुभव कर लेता है। सम्यग्दृष्टि अपने आप को समझाता न कि दूसरों को । निर्ग्रन्थ राम भगवान सम्यग्दृष्टि थे तो उन्हें जंगल में भी आनंद आया और जंगल मे कई प्राणियों का उन्होंने उद्धार किया ।
आचार्य समन्तभ्रद स्वामी ने रत्नकरण्ड श्रावकाचार में कहा है कि सम्यग्दर्शन से संसार के सारे दुःख दूर हो जाते हैं …
सम्यग्दर्शनशुद्धा, नारक तिर्यङ्न पुंसकस्त्रीत्वानि ।
दुष्कुल विकृताल्पायुदरिद्रतां च व्रजन्ति नाप्यव्रतिकाः ॥35॥
अर्थात- सम्यग्दर्शन से शुद्ध जीव व्रत रहित होने पर भी नारक, तिर्यञ्च नपुंसक और स्त्रीपने को और नीचकुल, विकलाङ्गता, अल्पायु और दरिद्रता को प्राप्त नहीं होते।
सम्यग्दर्शन का मतलब जो प्रभु से सच्चा प्यार करता हो । उसकी हर बात को आज्ञा मान कर ग्रहण करता हो। उसके बताए मार्ग पर चलता हो, उसमें अपने तर्क वितर्क नहीं करता है, वैसा प्राणी अगर संयम रहित हो तो भी नरक आदि में जन्म नहीं लेता है। यह बात अलग है कि आयु कर्म पहले बांध लिया है और सम्यग्दर्शन बाद में हुआ है तो वह नरक आदि जा सकता , पर वहां भी वह दुख में न होकर उसे अपने कर्मों का फल समझता है। कर्म के उदय से कोई दुख आ भी जाता है तो वह उसे शांत परिणाम से सहन करता हैं ।
अनंत सागर
श्रावकाचार ( 41 वां दिन)
गुरुवार, 10 फरवरी 2022, बांसवाड़ा
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