07
Apr
सम्यग्दर्शन के कई भेद अलग-अलग शास्त्रों में बताए हैं। भेदों के नाम अलग-अलग है पर सब का अर्थ,भाव एक ही है। सर्वार्थसिद्धि में सराग और वीतराग सम्यग्दर्शन भी बताया है ।
सम्यग्दर्शन : पाप-पुण्य का श्रद्धान कर पाप का त्याग करना अथवा देव,शास्त्र,गुरु पर श्रद्धा करना सम्यग्दर्शन हैं। इसके स्वामी के अप्रेक्षा से सराग और वीतराग रूप दो भेद हैं ।
सराग सम्यग्दर्शन : प्रशम,संवेग,अनुकम्पा,आस्तिक्य आदि की अभिव्यक्ति लक्षण वाला सराग सम्यग्दर्शन है।
• रागादि की तीव्रता का न होना प्रशम भाव है ।
• संसार से भीतरूप परिणाम का होना संवेग है ।
• सब जीवों पर दया भाव रखना अनुकम्पा हैं ।
• जीवादि पदार्थ है, ऐसी बुद्धि का होना आस्तिक्य है ।
वीतराग सम्यग्दर्शन : आत्मा की विशुद्धि मात्र वीतराग सम्यग्दर्शन है ।
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