अच्छी आइसक्रीम बनाने में दूध, शक्कर, केसर, सूखे मेवे आदि की आवश्कता होती है। इन सब में महत्ता शक्कर की है, क्योंकि आइसक्रीम में मीठा ना हो तो वह खाई नहीं जाएगी। बिना दूध भी आइसक्रीम हो सकती है अर्थात पानी की। उसमें केसर, काजू भी नहीं होता, पर बिना शक्कर के आइसक्रीम का महत्व नही है। उसी प्रकार से रत्नत्रय धर्म या मोक्ष मार्ग में सम्यग्दर्शन महत्वपूर्ण है, उसके बिना ज्ञान और चारित्र किसी काम का नही है। सम्यग्दर्शन के बिना ज्ञान एवं चारित्र अशुभ कर्म बांधता है।
आचार्य समन्तभ्रद स्वामी ने रत्नकरण्ड श्रावकाचार में कहा है कि मोक्ष मार्ग में सम्यग्दर्शन को उत्कृष्ट बताते हुए कहा है कि…..
दर्शनं ज्ञानचारित्रात्साधिमानमुपाश्नुते ।
दर्शनं कर्णधारं तन्मोक्षमार्गे प्रचक्षते ॥31॥
अर्थात- जिस प्रकार समुद्र के उस पार जाने में नाव की प्रवृत्ति, नाव चलाने वाले मल्लाह के अधीन होती है, उसी प्रकार संसार समुद्र के उस पार जाने में मोक्षमार्ग रूपी नाव की प्रवृत्ति सम्यग्दर्शन रूपी कर्णधार के अधीन है। यही कारण है कि सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र की अपेक्षा श्रेष्ठता या उत्कृष्टता को प्राप्त होता है।
सम्यग्दर्शन से ही ज्ञान और चारित्र निर्मल होता है। आप को पूरा शास्त्रीय ज्ञान हो पर यह श्रद्धा और विश्वास नहीं हो कि यह जिनेन्द्र भगवान के द्वारा कहा गया है। कर्म निर्जरा का कारण है। संसार के दुखों को दूर करता है तो वह ज्ञान सम्यक नहीं हो सकता है । गौतम स्वामी घर छोड़ कर कई शिष्यों के साथ आश्रम में रहते थे, पर जिनेन्द्र भगवान पर श्रद्धा नहीं थी। उन्होंने जैसे ही भगवान पर श्रद्धा करते हुए महावीर तीर्थंकर को नमस्कार किया तो वह ज्ञान और चारित्र कुछ ही क्षण में सम्यक हो गया और वह भगवान महावीर के गणधर बन गए। अर्थात तीर्थंकर भगवंतों में जब तक श्रद्धा नहीं होगी तब तक वह ज्ञान और आचरण सम्यक रहित और विवेक रहित ही होगा। सम्यग्दर्शन ही मोक्ष मार्ग-रत्नत्रय धर्म में उत्कृष्ट और महत्वपूर्ण है । वस्तु कितना भी अच्छी हो पर जब तक उसमें मार्का ना हो हमें विश्वास नहीं होता। सम्यग्दर्शन भी ऐसा ही मार्का है जो प्रमाणित करता है कि ज्ञान और आचरण शुद्ध एवं पवित्र है ।
अनंत सागर
श्रावकाचार ( 37 वां दिन)
रविवार, 6 फरवरी 2022, बांसवाड़ा
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