धर्मकथाओं से प्रेरणा लेने पर ही धार्मिक संस्कृति सुरक्षित रहती है। पद्मपुराण के पर्व 100 में आए प्रसंग से सीता से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए कि कैसी भी परिस्थिति क्यों ना हो, हमें आत्मविश्वास बनाए रखना चाहिए। आओ जानते हैं, क्या प्रेरणा लेनी चाहिए…
सीता जब वज्रजंघ के साथ उसके राज्य में आ गईं, उस समय वह गर्भवती थीं। सीता में आत्मविश्वास था कि उन्होंने कोई गलत कार्य नहीं किया है। गर्भवती सीता की सेविकाएं सेवा करती कोई छत्र धारण करती थी तो कोई चमर धारण कर खड़ी रहती थी। सीता ने स्वप्न में देखा कि हाथी उनका जल से अभिषेक कर रहे हैं। जब वह सोकर उठतीं तो जय- जयकार के शब्द गुंजायमान होते थे। सीता ने श्रवण नक्षत्र, श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन युगल दो पुत्रों को जन्म दिया जिनका नाम अनंगलवण और मदनांगकुश रखा गया। दोनों पुत्रों की रक्षा के लिए उनके सिर पर सरसों के दाने डाले गए। धीरे-धीरे दोनों बड़े होने लग गए। एक दिन वज्रजंघ के घर सिद्धार्थ नाम से प्रसिद्ध शुद्ध हृदयधारक क्षुल्लक आए। वह क्षुल्लक महाविद्याओं में पराक्रमी थे। वह तीनों संध्याओं में प्रतिदिन मेरुपर्वत पर विद्यमान जिन प्रतिमाओं की वंदना करने जाते थे। सीता ने उन्हें नमस्कार किया। क्षुल्लक और सीता की वार्ता हुई जिसके बाद क्षुल्लक ने दोनों पुत्रों को कुछ ही समय में शस्त्र और शास्त्र विद्या ग्रहण करवा दी। दोनों बालक थोड़े समय में ही ज्ञान, विज्ञान,कलाओं और गुणों में विशारद तथा दिव्यशास्त्रों के आह्वान एवं छोड़ने के विषय में अत्यन्त निपुण हो गए। तो आप को प्रेरणा लेनी चाहिए कि गृहस्थ धर्म के पालन में कहीं संकट आते हैं, पर हमें अपना आत्मविश्वास बना रखते हुए अपने कर्तव्य का पालन करते रहना चाहिए।
अनंत सागर
प्रेरणा
1 जुलाई 2021,गुरुवार
लोहारिया (राज.)
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