संसार में सारे सुख, सम्मान, पद, कुल, जाति, धन, बड़प्पन, इन्द्र आदि पद सब पुण्य से मिलता है। पुण्य का बन्ध सम्यग्दर्शन के साथ ही होता है। तीर्थंकरों, शास्त्रों और गुरु की आराधना से सम्यग्दर्शन होता है। साथ ही मन निर्मल होता है। अभिषेक, पूजन, भक्ति और गुणगान के साथ तीर्थंकर की आराधना, शास्त्रों को पढ़ना, प्रकाशन करना, सुरक्षा करना और यहि भावना करना कि कब इनका अध्यनन कर केवलज्ञान को प्राप्त करूंगा। गुरु के आहार, विहार, निहार में सहयोगी बनना, उनकी साधना में सहयोगी बनना यह सब आराधना है। संसारी काम के साथ यह सब करने वाले ही सम्यग्दृष्टि होते हैं । यह सत्य है कि सम्यग्दृष्टि कभी भी किसी प्रकार के दुखों से दुखी नहीं होता है।
आचार्य समन्तभ्रद स्वामी ने रत्नकरण्ड श्रावकाचार में कहा है कि …
देवेन्द्रचक्रमहिमानममेयमानम्, राजेन्द्रचक्रमवनीन्द्रशिरोऽर्चनीयम् ।
धर्मेन्द्रचक्रमधरीकृतसर्वलोकं,
लवा शिवं च जिनभक्तिरुपैति भव्यः ॥41।।
अर्थात – जिनेन्द्रदेव की भक्ति से सहित सम्यग्दृष्टि पुरुष अपरिमित पूजा अथवा ज्ञान को इन्द्रसमूह की महिमा को राजाओं के मस्तक से पूजनीय चक्रवर्ती के चक्र रत्न को और समस्त लोक को नीचा करने वाले तीर्थंकर के धर्मचक्र को प्राप्तकर मोक्ष को प्राप्त होता है।
जिनेन्द्र भगवान में सातिशय अनुराग को रखने वाला भव्य सम्यग्दृष्टि जीव, स्वर्ग के इन्द्र समूह की उस महिमा को प्राप्त होता है, जिसका मान-प्रभाव अथवा ज्ञान अपरिमित होता है। राजेन्द्रचक्र चक्रवर्ती के उस सुदर्शन नामक चक्ररत्न को प्राप्त होता है जो कि अपनी-अपनी पृथ्वी के अधिपति मुकुटबद्ध राजाओं के द्वारा पूजनीय होता है तथा धर्मेन्द्र चक्र-उत्तम क्षमादि अथवा चारित्र रूप लक्षण से युक्त धर्म के इन्द्र- अनुष्ठाता या प्रणेता तीर्थंकर आदि के समूह को अथवा तीर्थंकरों के सूचक उस धर्म चक्र को प्राप्त होता है जो कि अपनी महिमा से समस्त लोक त्रिभुवन को अपना सेवक बना लेता है। अन्त में इन सबको प्राप्त कर मोक्ष को प्राप्त होता है। इस तरह यह सम्यग्दर्शन सराग अवस्था में अभ्युदय का और वीतराग अवस्था में मोक्ष का कारण बनता है।
अनंत सागर
श्रावकाचार ( 47वां दिन)
बुधवार, 16 फरवरी 2022, बांसवाड़ा
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