आज अधिकांश परिवारों में युवा पीढी धर्म से दूर है। यह एक गंभीर विषय है। हम इसे जितना नजर अंदाज करेंगे उतना हमारे परिवारों के अस्तित्व पर संकट रहेगा। आज हम देख भी रहे है कि परिवार छोटे -छोटे होते जा रहे हैं। न तो आप घरों में दादी-नानी की कहानी की गूंज सुनाई देती है और ना ही सुबह-सुबह णमोकार मंत्र की आवाज आती है। शायद यही कारण है की घरों से संस्कार-संस्कृति की चर्चा ही खत्म होती जा रही है। धर्म का महत्त्व कम हो गया और रिश्तों का महत्त्व बढ़ता जा रहा है। हम देख रहे है कि जिन घरों में महीनों- महीनों चैके लगते थे अब उन घरों में चैके की बात भी नहीं होती, लेकिन रिश्तों के नाम पर किट्टी पार्टी हर सप्ताह हो जाती है। हमें तीर्थंकरों के जीवन चरित्र का पता नही हो पर हीरो और हीरोइन के जीवन के बारे में सब पता होता है। हमें आपने देश की संस्कृति और संस्कारों का भले ही पता ना हो, लेकिन दूसरे देशों की संस्कृति -संस्कारों का पता है और उनके त्यौहार तक हम मनाने लगे हैं। हमारे त्योंहारों की बात करें तो इन्हें हम मना तो रहे हैं, लेकिन इन त्यौहारों की मूल भाव समाप्त हो गया है। उनमें भी फैशन आ गया है। अब यह समय भी नही है कि इन सब विषयों पर बहस की जाए, क्यों कि बहस का कोई अंत नही है और हम एक दूसरे को इसके लिए जिम्मेदार ठहराते रहेंगे।
इन सब के बजाए एक अच्छे काम की शुरुआत करने का संकल्प करें और उस काम की शुरूआत हम अपने घर से ही करें। आज ही संकल्प करें कि हम अपने घर में ‘संस्कृति मंदिर’ की स्थापना करेंगे। संस्कृति मंदिर का अर्थ है ऐसा मंदिर जहां मन, वचन और काय को पवित्र करने के साधन हो। जहां पर तीर्थंकरों, महापुरुषों के जीवन चरित्र के ग्रन्थ हांे, जाप, माला, हवन कुंड, योग की पुस्तकें, परिवार-समाज का इतिहास बताने वाली पुस्तकें, तीर्थंकरों के चित्र, धार्मिक भजनों की पुस्तकें आदि हों। परिवार का खान-पान, रहन-सहन, उठना बैठना कैसे हो, इसकी जानकारी भी हो। हमारे त्योंहार कैसे है, उनका क्या स्वरूप है, इन सब की जानकारी भी हो। भाषा को शुद्ध करने के लिए शब्द कोश जहां पर हो, घर का वह कमरा हमारा संस्कृति मंदिर है।
अनंत सागर
अंतर्मुखी के दिल की बात
(तेतीसवां भाग)
16 नवम्बर, 2020, सोमवार,बांसवाड़ा
अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज
(शिष्य : आचार्य श्री अनुभव सागर जी)
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