शास्त्र स्वाध्याय ही दुःखों से बचा सकता है । शास्त्र का विनय,श्रद्धा और दान करने से गाय चराने वाला व्यक्ति आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी बन जाता है । आप स्वयं इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि शास्त्र स्वाध्याय के माध्यम से हमें कितने दुःखो को से बच सकते हैं । शास्त्र के स्वाध्याय से होने वाला ज्ञान अमृत के समान है । तो आइए आज हम आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी की कहानी पढ़ते है/सुनते हैं ।
कोण्डेश नाम का गाय चराने वाला एक ग्वाला था जो अनपढ़ था । एक दिन वह जंगल में गाय चराने गया तो उसने वहां पर एक मुनि राज को देखा। वह उपदेश दे रहे थे । ग्वाले को कुछ समझ में नहीं आ रहा था पर वह सुन रहा था। उपदेश समापन के बाद वह वहां से चला गया । कुछ दिनों बाद उसी जंगल में आग लग गई। पूरा जंगल जल रहा था लेकिन उसने देखा कि एक वृक्ष हरा भरा है। वह नहीं जल रहा। उसने पास जाकर देखा कि तो यह वही पेड था जहां पर मुनिराज ने बैठकर उपदेश दिया था। वह देखता है कि उस पेड़ के अंदर एक शास्त्र रखा हुआ है। वह पढ़ना तो जानता नही था। उसने उस शास्त्र को लिया और अपने घर ले गया। वह रोज उसकी सेवा करता अर्थात उसको नमस्कार करता । एक दिन गाय चराते हुए उसे वही मुनिराज दिखे। उसने वह शास्त्र मुनिराज को भेंट किया । शास्त्र भेंट के प्रभाव से कोण्डेश मरकर कौण्डकुन्दपुर में सेठ के यहां पैदा हुआ और उसका नाम पद्मन्दि रखा गया । पद्मन्दि 12 वर्ष की आयु में आचार्य जिनचन्द से दीक्षा धारण कर आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी बने ।
तो देखा आपने शास्त्र सेवा और स्वाध्याय के फल से एक गाय चराने वाले कैसे अशुभ कर्मो का नाश कर जैन धर्म के महान आचार्य बन गए। तो बताइए हम भी क्यों नही शास्त्र स्वाध्याय का संकल्प कर दुःखो के कारण से बचकर शाश्वत सुख को प्राप्त करें और आज ही स्वाध्याय का संकल्प करें।
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