आज जो कुछ लिखा जाता है, वह कल के लिए इतिहास बन जाता है। हम जो भी लिखें, वह भूत, भविष्य और वर्तमान की परिस्थितियों को देखकर ही लिखें। आज हम देख रहे हैं कि कुछ अप्रमाणिक शास्त्र अर्थात जिन्हें प्राचीन आचार्यों ने नहीं लिखा है, को आधार बनाकर या प्राचीन आचार्यों के शास्त्रों का आधार लिए बिना ही शास्त्र लिखे जा रहे हैं। आज इन्हीं शास्त्रों के आधार पर पूजा-अभिषेक आदि की बताई गई विधि पर समाज में अनेक प्रकार के विवाद हैं। इन्हीं सब बातों को लेकर निरन्तर विवाद की स्थिति बनी रहती है। तो क्या हम अपनी मानसिकता नहीं बदल सकते हैं? जहां जिस प्रद्धति से पूजा -अभिषेक होता चला आ रहा है, उसे हम नहीं बदलें। हम पुराने क्षेत्रों के नाम बदलकर नया नाम दे रहे हैं, यह भी क्या उचित है? यह क्या सब उचित है? क्या हम ऐसा करके धर्म के नाम पर श्रावकों को भटका तो नहीं रहे हैं? क्या धर्म के नाम पर राजनीति तो नहीं कर रहे हैं। यह सब सोचने की आवश्यकता है। विचार करें, इन सबके कारण क्या सामाजिक स्तर की व्यवस्था बिगड़ तो नहीं रही है? क्या हम शिक्षा,चिकित्सा, सेवा के कार्यों मे पिछड़ तो नहीं रहे हैं? क्या इन सबकी वजह से हम दया,अहिंसा, जैनधर्म के मूल सिद्धान्तों से दूर तो नहीं हो रहे हैं? अंत में, यही कहना चाहूंगा कि इन मुद्दों पर विचार कर समाज के इतिहास के साथ छेड़छाड़ न करें। प्राचीन इतिहास को सुरक्षित रखें। यह ध्यान रखना होगा कि हर समाज का अस्तित्व उसके इतिहास से ही सुरक्षित रहता है। कहीं अनजाने में हम अपने इतिहास के हत्यारे न बन जाएं?
अनंत सागर
अंतर्मुखी दिल की बात
28 जून 2021, सोमवार
भीलूड़ा (राज.)
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