आचार्य ने कहा कि शब्दों में बड़ी शक्ति होती है उनका संभाल उपयोग करना चाहिए। भीलूड़ा में चातुर्मास कर रहे है मुनि पूज्य सागर महाराज।
भीलूड़ा/ डूंगरपुर। भीलूड़ा में चातुर्मास कर रहे अन्तर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज का 48 दिन की मौन साधना और उपवास चल रहा है। साधना के 31 वें दिन मुनि के दीक्षा गुरु आचार्य अनुभव सागर महाराज सागवाड़ा से गुरुवार शाम विहार कर साधना की अनुमोदना करने भीलूड़ा पहुंचे। वहां पर चौराहे पर गुरु शिष्य का मिलन हुआ। शिष्य ने चरण वंदना की तो गुरु ने शिष्य को गले लगा लिया। जैसे गुरु शिष्य के चेहरे खिले तो उपस्थित श्रावको के चेहरे भी खिल गए। मिलन का यह दृश्य इसलिए भी भीलूड़ा वालो के लिए इतिहासिक और अद्भुद था क्यों कि मुनि पूज्य सागर महाराज को आचार्य अनुभव सागर महाराज में 1 मई 2015 को दीक्षा यही दी थी। सुबह 4 बजे की साधना में गुरु-शिष्य में साथ मिलकर मन्त्रो, पाठ का उच्चारण किया। शुक्रवार को सुबह 6 बजे आचार्य श्री ने सागवाड़ा के लिए वापस विहार कर दिया। आचार्य के भीलूड़ा नगर आगमन पर समाज ने स्वागत और जगह जगह पाद पक्षालन किया।
आचार्य श्री ने अपने प्रवचन में कहा कि मुझे आज मंदिर के दर्शन करते ही 1 मई 2015 की याद आ गई है । साधना का फल अद्भूत होता है। मुनि पूज्य सागर एक उपवास भी नहीं कर सकता था और साधना के संकल्प के साथ 15 उपवास कर लिए है । मुनियों के आहार देने के अवसर को कभी नहीं चूकना चाहिए। राम में अपने पूर्व भव में मुनि को आहार देने का अवसर को चूक गए थे तो उन्हें वन वन भटकना पढ़ा। शब्दों में बड़ी शक्ति होती है उनका संभाल उपयोग करना चाहिए। मुनि श्री पूज्य सागर महाराज का मौन था तो उनके मुखारविंद से गुरु के गुणगान सुने का अवसर नही मिला। गुरु शिष्य का चेहरा एक दूसरे के प्रति अपने कर्तव्य का बोध करा रहा था।
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