बच्चों आज हम पाठशाला में बात करेंगे श्रावक के अष्टमूलगुणों में से एक गुण पानी छानकर पीने की।
तो चलो हम पढ़ते है कि पानी कैसे छानना है।
जिससे सूर्य का बिम्ब न दिख सके, ऐसे अत्यन्त गाढ़े वस्त्र को दोहरा करके जल छानना चाहिए। छन्ने की लम्बाई उसकी चौड़ाई से डेढ़ गुनी होनी चाहिए। ऐसा करने से अहिंसा व्रत की रक्षा होती है तथा त्रस जीव उस वस्त्र में ही रह जाते हैं, जिससे छना हुआ जल त्रस जीवरहित हो जाता है। त्रस जीवों का रक्षण होने से हम मांस भक्षण के दोषों से बचा जाते है। जल छानने के बाद छन्ने में बचे जल को एक दूसरे पात्र में रखकर उसके ऊपर छने जल की धार छोड़नी चाहिए। उसके बाद उसे मूल स्त्रोत में पहुँचा देना चाहिए (जहां से पानी निकाला है)। इसके लिए कड़ीदार बाल्टी रखी जाती है, जिसे जल की सतह पर ले जाकर उड़ेला जाता है। ऐसा करने से उन सूक्ष्म जीवों को धक्का नहीं लगता तथा करुणा भी पूरी तरह पलती है। उक्त क्रिया को जीवाणी कहते हैं। छना हुआ जल एक मुहूर्त (48 मिनट) तक, सामान्य गर्म जल छह घण्टे तक तथा पूर्णतः उबला जल चौबीस घण्टे तक उपयोग करना चाहिए। इसके बाद उसमें त्रस जीवों की पुनरुत्पत्ति की सम्भावना रहने से उनकी हिंसा का डर रहता है।
अनंत सागर
पाठशाला
पचासवां भाग
10 अप्रेल 2021, शनिवार, भीलूड़ा (राजस्थान)
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