शृणोति गुर्वादिभ्यो धर्ममिति श्रावक:।
अर्थात् – जो श्रद्धा पूर्वक गुरु आदि से धर्म श्रवण करता है, वह श्रावक है।
इस धरती पर मानव जन्म करोड़ों की
संख्या होता है पर सब ही श्रावक बन जाए यह जरूरी नहीं है। मानव के रूप में जन्म
होना अलग बात है और जन्म के बाद उस मानव को संस्कारों के माध्यम से श्रावक बनाना
अलग बात है। मानव और श्रावक की दिन चर्या में जमीन -आसमान, रात-दिन जैसा फर्क है। एक श्रावक का खान-पान, रहन-सहन, बोल-चाल, उठाना-बैठना और आचार-विचार सभी सात्विक होते हैं। वह शाहकार, अहिंसा से बने पदार्थों का ही जीवन में उपयोग करता है। कुल मिलाकर
उसे बचपन से सात्विक रहने के संस्कार दिए जाते हैं।इसलिए जो मानव मांसाहारी और
तामसिक प्रवृति के होते हैं उनमें श्रावक के संस्कार नहीं हुए हैं यह समझना चाहिए
इसलिए हर मानव श्रावक हो वह जरूरी नहीं है।
किंतु मानव, संस्कारों से कैसे श्रावक बनाता है ?? बच्चे के
जन्म के कम से कम 45
दिन के बाद माता-पिता उसे मन्दिर
ले जाते हैं। भगवान या गुरु के समक्ष बच्चे को रख कर माता-पिता यह संकल्प लेते हैं
कि आज से जब तक बच्चा 8 वर्ष का नहीं हो जाता, तब तक उसे किसी भी रूप में चाहे दवा के रूप में भी मद्य, मांस,
मधु और पंच उदम्बर फल नहीं देंगे, साथ ही यह भी संकल्प लेते हैं कि प्रतिदिन बच्चे को यह बताते रहेंगे
कि तुम्हारा इन सब का त्याग है। इन सबके सेवन करने से पापाचार बढ़ता है, विचार और भाव खराब होते हैं। हमारी संस्कृति का नाश होता है। जब वह
बच्चा आठ साल का हो जाता है, तब उसे इन नियमों की जानकारी दे
देते हैं। उसी दिन बच्चे को मन्दिर ले जाकर उससे संकल्प करवाते हैं कि आज के बाद
वह ध्यान रखेगा कि मद्य, मांस, मधु और पंच उदम्बर फल का सेव नहीं करेगा क्यों वह श्रावक है। जैन कुल
में उसका जन्म हुआ है। इस पूरी क्रिया का नाम ही श्रावक बनने की क्रिया है। मद्य, मांस,
मधु और पंच उदम्बर फल का त्याग ही
अष्टमूलगुण का पालन कहलाता है। भगवान के दर्शन, पानी छान
कर पीना को भी अष्टमूलगुणों में गिना है। जब बच्चा आठ साल का हो जाता है जेनरु
संस्कार होता है। जेनरु संस्कार का मलतब ही है की मानव आज संकल्प कर रहा है की वह
जीवन भर सात्विक,
शकाहारी, अहिंसा से बने पदार्थों का उपयोग करेगा। धीरे धीरे श्रावक से
परमात्मा बने की और अपने कदमों को बढ़ाएगा। इसकी पहली सीढ़ी है, अष्टमूलगुणों का जीवन में धारण करना। जन्म से मानव में श्रावक के
संस्कार नहीं होते हैं, पर जब गुरु आदि के उपदेश से मानव
से श्रावक बनने का विचार बनता है तो उस समय भी यही सब संस्कार किया जाता है। मानव
को सात्विक बनाएं रखने के लिए श्रावक के खाना पान पर ज़ोर दिया है। कहा भी गया है , जैसा खाए अन्न वैसा होए मन। तीर्थंकरों ने अलग अलग ऋतुओं में आटा, मसाला आदि लेकर सभी खाद्य साम्रगी की एक मर्यादित दिनांक यानी
एक्सपायरी डेट बताई है। मर्यादा समाप्त हो जाने के बाद उस खाद्य प्रदार्थ में जीव
पैदा हो जाते हैं। ये जीव दिखाई नहीं देते पर वे उस खाद्य पदार्थ की विटामिन शक्ति
समाप्त कर देते हैं, जिससे शरीर में कीटाणु से लड़ने
की शक्ति समाप्त हो जाती है। वे खाद्य पदार्थ जहर का काम करते हैं। अनेक शोध भी
बता चुके हैं कि बाजार के खाद्य पदार्थों की मर्यादा बढ़ाने के लिए कई प्रकार के
रसायनों का उपयोग किया जाता है, जो शरीर के लिए हानिकाक हैं।
तीर्थंकरों की बात आज वैज्ञानिक भी साबित कर चुके हैं। जैन धर्म में पानी की
मर्यादा के बारे में कहा गया है कि पानी छानने के बाद 48 मिनिट तक पीने योग्य होता है। उसी पानी को कम गर्म करने पर 6 घंटे और अधिक गर्म करने पर 24 घंटे की मर्यादा का वर्णन किया
है। वैज्ञानिकों ने कहा भी है कि बिना छने पानी की एक बूंद में 36450 जीव होते हैं।
मानव के श्रावक बनने के बाद की एक
घटना का वर्णन करते है यह घटना है एक जीव की जो महावीर बनने से पहले जंगल में भील
था। जन्म से उसके महावीर बनने के संस्कार का बीजारोपण हो गया था। हम बात कर करे
हैं, भगवान महावीर की। जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र में सीता
नदी के उत्तर किनारे पर ‘पुष्कलावती› नाम का देश है। उसकी ‘पुण्डरीकिणी› नगरी में
एक ‹मधु› नाम का वन है। उसमें ‹पुरुरवा› नाम का एक भील, भीलों का राजा अपनी ‘कालिका› नाम की स्त्री के साथ रहता था। किसी दिन
दिग्भ्रम के कारण ‹श्री सागरसेन› नामक मुनिराज को इधर-उधर भ्रमण करते हुये देखकर
यह भील उन्हें मारने को उद्यत हुआ उसकी स्त्री ने यह कहकर मना कर दिया कि ‹ये वन
के देवता घूम रहे हैं इन्हें मत मारो।› वह पुरुरवा उसी समय मुनि को नमस्कार कर तथा
उनके वचन सुनकर शांत हो गया। मुनिराज ने उससे मद्य, मांस और
मधु इन तीन मकारों का त्याग करा दिया। मांसाहारी भील भी इन तीनों के त्यागरूप व्रत
का जीवनपर्यन्त पालन कर आयु के अंत में मरकर सौधर्म स्वर्ग में एक सागर की आयु को
धारण करने वाला देव हो गया। कहाँ तो वह हिंसक क्रूर भील पाप करके नरक चला जाता और
कहाँ उसे गुरु का समागम मिला कि जिनसे हिंसा का त्याग करके स्वर्ग चला गया।
अनंत सागर
श्रावक (भाग 2)
13 मई 2020, उदयपुर
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