किसी भी देश की पहचान उसकी संस्कृति और संस्कारों से होती है। पूरे विश्व में भारत देश की पहचान यहां की धार्मिक संस्कृति, त्याग, दान, शास्त्र, भोजन, पहनावे और बलिदान से है। आज पूरे भारत में अनेको धार्मिक स्थल, बलिदान को याद करने वाले स्थल है। किसी की स्मृति में बनाए गए ये सामाजिक धार्मिक स्थल हमें किसी ना किसी रूप में उपदेश देते हैं। आज हम शांति, सुख की तलाश में इन स्थलों पर आते हैं। हमारे इन स्थलों को देखने देश विदेश के लोग आते हैं। फिर इन पर शोध करते हैं। यह परम्परा अनादि काल से चलती आ रही है। विदेशी लोगो ने भी हमारी समृद्ध संस्कृति को देखा और प्रभावित हुए थे। जैनाचार्य की कितनी बड़ी सोच रही होगी कि देश की पहचान संस्कृति और संस्कारों का नाश ना हो इसके लिए प्राचीन धार्मिक, सामाजिक संस्कृति को प्रचारित किया और शास्त्र प्रकाशन के साथ ही मन मस्तिष्क में हमारी संस्कृति बसी रहे इसके लिए समाज को उपदेश दिया कि तुम जितना कमाते हो उसका कम से कम 7 प्रतिशत धन इन स्थानों पर खर्च करो।
जिनबिम्बं जिनागारं जिनयात्रा महोत्सवं।
जिनतीर्थं जिनागमं जिनायतानि सप्तधा।।
अर्थ – जिनबिंब, जिनमंदिर, जिनयात्रा, पंच कल्याणक,
जिन तीर्थोद्धार, जिनागम प्रकाशन, जिन आयतन
इन सात जगह पर दान देने की परम्परा की शुरुआत जैनाचार्यों ने कराई। इससे हम अंदाज लगा सकते है कि जैनाचार्य को संस्कृति और संस्कारों की रक्षा की कितनी बड़ी सोच थी। जैनाचार्यो की सोच का ही फल है कि आज भी नए नए धार्मिक स्थल, सामाजिक स्थल बन रहे हैं, शास्त्रों का प्रकाशन हो रहा और हमारी संस्कृति अभी भी दिखाई दे रही है। आज का निर्माण हजारों साल बाद इतिहास बन जाएगा। जैसे आज हम जमीन की खुदाई करते हैं तो प्राचीन धार्मिक, सामाजिक संस्कृति और शास्त्रों के अवशेष मिलते है। उसी से हमारी संस्कृति का पता चलता है। इसी तरह आज जो स्थल बन रहे हैं हजारों साल बाद उनके अवशेष निकलेंगे जो हमारा इतिहास बताएंगे। इस तरह यह परम्परा चलती रहेगी और हमारा इतिहास अनंतकाल तक जीवित रहेगा। कोई यह कहे कि इन धार्मिक, सामाजिक स्थल और शास्त्र प्रकाशन की क्या आवश्यकता है तो उन्हें यह पूरा इतिहास देख लेना चाहिए। इन सात स्थानों पर दान देने वालो को श्रावक शब्द से संबोधित किया गया है। इसके अलावा भी आचरण, वाणी और मन को पवित्र करने लिए भी दान आदि क्रियाएं बताई है।
अनंत सागर
30 सितम्बर 2020, बुधवार, लोहारिया
श्रावक
(बाईसवां भाग)
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