भीलूड़ा/सागवाड़ा – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज ने शनिवार को श्री शान्तिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर भीलूड़ा में आयोजित धर्मसभा में कहा कि तनाव के कारण व्यक्ति अपने मन और मस्तिष्क को दूषित कर लेता है। जिससे उसके सोचने समझने की क्षमता खत्म हो जाती है और वह सही निर्णय नही कर पाता है।
अंतर्मुखी ने कहा कि तनाव से व्यक्ति की जीने की इच्छा ही खत्म हो जाती है। टेंशन के चलते व्यक्ति स्वयं अपने अंदर की प्रतिभा को खत्म कर लेता है और सफल होने वाले काम भी असफल हो जाते है। महाराज के मुताबिक पति-पत्नी के आपसी मनमुटाव का कारण भी तनाव है। पति चाहता है, पत्नी मेरे अनुसार चले और पत्नी चाहती है पति मेरे अनुसार चले। दोनों के बीच पसन्द नापसंद के चलते तनाव पैदा होता है।
महाराज ने रामायण का एक प्रसंग सुनाते हुए कहा कि कैकई ने राज दशरथ से भरत के लिए राज्य मांग लिया क्योंकि कैकई को लग रहा था भरत दीक्षाधारण कर लेगा राम के वनवास चले जाने के बाद कैकई को लगा कि उसने गलत किया है। वह भरत के साथ राम को वापस लाने गई पर राम नही आए। तो इस तरह तनाव में किया गया निर्णय गलत हो गया।
चिंता और तनाव का संबंध समझाते हुए मुनि महाराज ने कहा कि चिंता से तनाव का जन्म होता है। हम भविष्य की आशंकाओं के कारण तनावकर टेंशन कर वर्तमान को बिगाड़ लेते हैं। यहां तक कि हम धर्म के काम में भी टेंशन कर लेते हैं। मंदिर, गुरु दर्शन के लिए भी हम टेंशन करते हैं कि कौन जा रहा है, कौन नहीं जा रहा है। महाराज जी ने कहा कि तुम मंदिर जाते हो तो वहां भी मंदिर से वापस आने का टेंशन होता है। धार्मिक क्षेत्र में जाने का प्रोग्राम बन जाता है तो दर्शन करने के भाव तो दूर चले जाते हैं और इस बात का तनाव कर लेते हैं कि वहां रहने का स्थान मिलेगा या नहीं, खाने को मिलेगा या नहीं। टेंशन को छोड़ने के लिए धार्मिक संगति, गुरु संगति की आवश्यकता होती है। तभी हम तनावमुक्त होकर जीवन जी सकते हैं। टेंशन तो ऐसा गोल चक्कर है की एक के बाद एक आता ही रहता है। टेंशन नहीं हो उसके लिए दूसरों को देखना बंद कर दो। उनके कार्य को देखना बंद कर दो और अपने आपको समझना शुरू कर दो। अपने आपको देखना प्रारम्भ कर दो, तभी टेंशन से दूर हो सकता है। टेंशन में व्यक्ति उलझ जाता है और बनते-बनते काम बिगड़ जाता है।
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