चिंतन से जनसरोकार पूरे होते हैं और जितना चिंतन बढ़ेगा, उतनी ही चिंता कम होती जाएगी, यह मैंने मुनि श्री की 48 दिन की मौन साधना के दौरान जाना। गुरु जी के आशीर्वाद से मैंने यह भी जाना कि यह चिंतन ही है, जो हमें जीवन को सही मायने में जीना सिखाता है। मुनि श्री ने अपनी मौन साधना से प्रभु को आध्यात्मिकता में स्मरित किया और उनके स्वरूप पर विचार किया। मौन साधना के बाद उन्होंने हमें बताया कि आत्म समीक्षा के बाद बारी आती है आत्म-परिष्कार की और अपनी इच्छाओं को कम करने की। यह उनकी मौन साधना के मुझे असर का परिणाम ही है कि मैंने अब संकल्प किया है कि जो भूल मुझसे पहले हुई है, वह आगे कभी न हो। मुनि श्री एक ऐसे दूरदर्शी तत्ववेता महापुरुष हैं, जो अपनी विवेक रूपी टॉर्च से हम सभी के जीवन के अंधकार को दूर कर रहे हैं।
विमल बड़ज्यात्या
किशनगढ़
ट्रस्टी/उपाध्यक्ष : गुणस्थली, चकवाड़ा
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