उदयपुर से एक युवा श्रावक दर्शन करने लोहारिया आया। उस युवा श्रावक को मैं 20 वर्षो से जानता हूं। पूरा परिवार देव,शास्त्र और गुरु भक्त है। मेरा मौन था कुछ बता नहीं हुई। मैंने लिखकर कहा उदयपुर में तो पूरे चातुर्मास में 2-3 बार ही दर्शन करने आए। घर के संस्कार कहाँ चले गए। इतने बड़े हो गए कि दर्शन करने का समय भी नहीं। उसने जो जवाब दिया वह बड़ा चकित करने वाला था। जवाब सुन कर मैं तो यही सोचते रह गया कि इतने धर्मात्मा और संस्कारित परिवारा के बच्चे भी ऐसा सोचते हैं। उसने कहा महाराज आप ही नही उदयपुर अभी 2-3 सालों में जो भी साधु आए हैं उनके भी 1-2 बार ही दर्शन करने गया था। मैंने पूछा क्यों? उसने कहा सभी साधु यही कहते हैं कि कम आते हो, इसलिए मैंने भी जाना कम कर दिया।
यह बात मैं आप को इसलिए शेयर कर रहा हूं कि जो परिवार धर्मात्मा है जिनके परिवार से लोग त्याग के मार्ग पर निकले हैं, जब उनके मन में इस प्रकार के विचार आ गए तो यह बहुत बड़ी बात है। उस युवा के मन ऐसा आया ही क्यों? ऐसी क्या परिस्थिति बनी की उसने साधुओं के दर्शन कम कर दिए। यह समझना होगा नहीं तो आने वाले समय में आहार, विहार, निहार करवाने वाले श्रावक ही नहीं मिलेंगे। वर्तमान में ही कमी आ गई है। युवाओं की इन छोटी-छोटी बातों से श्रावक समाज और संत समाज को समझना होगा और युवाओं के मन में जो इस प्रकार के विचार धर्म और धर्मात्माओं के प्रति आ रहे हैं वह समाज के संस्कार और संस्कृति के घातक हो सकते हैं। इस प्रकार के कई प्रसंग और होंगे और उनके कारण भी कई अन्य होंगे पर युवा धर्म और धर्मात्मा से दूर हो रहे हैं इसमें कोई संदेह नहीं।
दूसरा प्रसंग सामने आता है कि जैन धर्म बहुत कठिन है। महाराज जी त्याग करवाते हैं। मुझे तो डर लगता है। ऐसी ही बातें हैं जो बार-बार युवा पीढ़ी से सुनने को मिलते हैं। पर आज एक बात कहता हूं युवा पीढ़ी से..… जिस बच्चे के माता-पिता नहीं होते उसे अनाथ कहते हैं। उसका पालन-पोषण कहीं भी हो पर वह अनाथ ही कहलाता है। मैं आप से यह कहना चाहता हूं कि धर्म, साधु हमारे माता-पिता के समान है। उनके इतिहास को पहचानो नहीं तो तुम अनाथ हो जाओगे। मैं आप को विश्वास दिलाता हूं कि तुम अपने धर्म के इतिहास को देखोगे तो पाओगे कि सबसे सहज धर्म जैन धर्म ही है। इससे डरे नहीं, भागे नहीं, इसके पास आएं और समझें। यही आप से कहना चाहता हूं आज मैं।
अंतर्मुखी के दिल की बात
(उनतीसवां भाग)
19 अक्टूबर, 2020, सोमवार, लोहारिया
अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज
(शिष्य : आचार्य श्री अनुभव सागर जी)
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