सम्यकदर्शन के आठ अंगों में से पांचवें उपगूहन अंग में प्रसिद्ध व्यक्तित्व की कहानी।
सुराष्ट्र देश के पाटलिपुत्र नगर में राजा यशोधर रहता था। उसकी रानी का नाम सुसीमा था। उनका सुवीर नाम का पुत्र था। सुवीर सप्त व्यसनों से अभिभूत था तथा ऐसे ही पुरुष उसकी सेवा करते थे। उसने कानों कान सुना कि पूर्व गौड़ देश की ताम्रलिप्त नगरी में जिनेन्द्रभक्त सेठ के सतखण्डा महल के ऊपर अनेक रक्षकों सहित श्रीपार्श्वनाथ भगवान् की प्रतिमा के ऊपर जो छत्रत्रय लगा है, उस पर एक विशेष प्रकार का अमूल्य वैडूर्यमणि है। लोभवश उस सुवीर ने अपने साथियों से पूछा कि क्या कोई उस मणि को लाने में समर्थ है ? सूर्य नामक चोर ने गला फाड़कर कहा कि यह तो क्या है, मैं इन्द्र के मुकुट का मणि भी ला सकता हूँ। इतना कहकर वह कपट से क्षुल्लक बन गया और अत्यधिक कायक्लेश से ग्राम तथा नगरों में क्षोभ करता हुआ क्रम से ताम्रलिप्त नगरी पहुँच गया। जिनेन्द्र भक्त सेठ ने जब सुना तो दर्शन एवं वन्दना कर क्षुल्लक को अपने घर ले आया। उसने उसे पार्श्वनाथ देव के दर्शन कराये और माया से न चाहते हुए भी उसे मणि का रक्षक बनाकर वहीं रख लिया।
एक दिन क्षुल्लक से पूछकर सेठ समुद्र यात्रा के लिये चला और नगर से बाहर निकलकर ठहर गया। वह चोर क्षुल्लक घर के लोगों को सामान ले जाने में व्यग्र जानकर आधी रात के समय उस मणि को लेकर चलता बना। मणि के तेज से मार्ग में कोतवालों ने उसे देख लिया और पकड़ने के लिये उसका पीछा किया। कोतवालों से बचकर भागने में असमर्थ हुआ वह चोर क्षुल्लक सेठ की ही शरण में जाकर कहने लगा कि मेरी रक्षा करो। कोतवालों का कल-कल शब्द सुनकर तथा पूर्वापर विचार कर सेठ ने जान लिया कि यह चोर है, परन्तु धर्म का उपहास बचाने के लिये उसने कहा कि यह मेरे कहने से ही रत्न लाया है, आप लोगों ने अच्छा नहीं किया जो इस महा तपस्वी को चोर घोषित किया। तदनन्तर सेठ के वचन को प्रमाण मानकर कोतवाल चले गये और सेठ ने उसे रात्रि के समय निकाल दिया। इसी प्रकार अन्य सम्यक दृष्टियों को भी असमर्थ और अज्ञानी जनों से आये हुए धर्म के दोष का आच्छादन करना चाहिये।
कहानी का सार है कि धर्म में आए दोषों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए और हमेशा अच्छाई को ग्रहण करना चाहिए।
अनंत सागर
श्रावकाचार ( 23वां दिन)
रविवार, 23 जनवरी 2022, बांसवाड़ा
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