भीलूड़ा । शान्तिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर भीलूड़ा में मंगलवार को धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज ने कहा कि जैन धर्म के महामंत्र णमोकार मंत्र के माध्यम से यह संदेश दिया गया है कि गुणों के साथ उपकार सबसे पहले वंदनीय है। णमोकार मंत्र में अरिहंतों को पहले नमस्कार किया है जबकि बड़े सिद्ध परमेष्ठि हैं पर अरिहन्त ने दिव्यदेशना के माध्यम से संसार में जीने की कला सिखाई है और पुण्य-पाप के बारे बताया है।
मुनिश्री ने कहा जो उपकार को भूल जाता है वह मनुष्य कहने लायक नही है। उपकार से मानवता बची हुई है। व्यवहारिक जीवन मे भी जब आप एक दूसरे का सहयोग करते हो तो वात्सल्य बढ़ता है। पंचेन्द्रिय को एक इन्द्रिय के उपकार को याद रखना चाहिए, तभी प्रकृति का बचाव हो पाएगा। पेड़, पौधे, जलवायु हम पर उपकार करते हैं, क्योंकि ये हैं तो हम हैं। इनके बिना मनुष्य जीवित नही रह सकता है। इनको काटना, जलाना और दूषित नही करना चाहिए। इनके प्रति करुणा और दया का भाव रखना चाहिए।
मुनिश्री ने कहा कि जैनधर्म में भगवान पार्श्वनाथ ने जलते हुए नाग- नागिन को णमोकार मंत्र सुनाया जिसके प्रभाव से वह देव बने और जब मुनि अवस्था में वैरी देव ने मुनि पार्श्वनाथ पर उपसर्ग किया तो नाग-नागिन धरणेन्द्र-पद्मावती बने और अपने फण से छत्र लगाकर उपसर्ग से बचाया। सोचिए जब तिर्यंच भी उपकार को नही भूलते तो फिर हम तो मनुष्य हैं।
जो उपकार को याद रखता है वह कभी भी व्यसनों, कुसंस्कारों की ओर नही जा सकता है। वह अपने माता-पिता के उपकारों को याद करेगा जिनके कारण वह बड़ा हुआ, उसे अच्छा स्कूल, कॉलेज मिला, व्यापार, नौकरी मिली। वह याद रखेगा कि मेरे व्यसन करने, कुसंस्कार रखने से माता-पिता, परिवार, समाज का नाम खराब होगा। लोग उन्हें भी गलत नजर से देखेंगे।
मुनि ने कहा कि जब एक दोस्त आपका काम करता है तो उसे जीवनभर याद करते हो, तो फिर जिसने तुम्हें जीने की कला सिखाई उस भगवान के प्रति तुम्हें उपकार याद रखना चाहिए। भगवान आदिनाथ ने ही असि, कृषि, मसि, वाणिज्य, शिल्प और विद्या का उपदेश देकर कर्म करना सिखाया और कहा कि इनके माध्यम से तुम अपना और अपने परिवार का जीवनयापन करो। धर्म के आधार स्तम्भ गुरु और शास्त्र भी हमारे उपकारी हैं जिनका स्मरण करते हुए उनकी सेवा में अपने आपको लगाना चाहिए। अगर यह आज नही होते तो हम अपने पाप कर्मों की निर्जरा कहाँ करते?
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