पद्मपुराण के पर्व 23 में विभीषण के पछतावे को लेकर एक कथा आती है। इस कथा से प्रेरणा लेनी चाहिए कि पाप कर्म के उदय से कोई अनर्थ हो जाए तो उसका प्रायश्चित अवश्य करना चाहिए।
क्या थी कथा
रावण को पता चला कि अयोध्या के राजा दशरथ का पुत्र और मिथिलापुर के राजा जनक की पुत्री मेरे मरण का कारण बनेगी तो रावण ने अपने भाई विभीषण सहित सभी सैनिकों को राजा दशरथ और जनक को मारने के लिए भेजा। यह बात राजा दशरथ और जनक को पहले ही पता हो गई थी। उन दोनों ने अपना पुतला बनवाया। लाख के रस से उसमें रुधिर भरा और प्राणधारी की कोमलता रखने वाला वास्तविक जैसा पुतला तैयार करवाया। उसे सिंहासन पर रख दिया। विभीषण और सैनिक दशरथ को ढूंढते अयोध्या पहुंचे और वहां पर दशरथ के पुतले का सिर काट कर प्रसन्न हो गए। इसी प्रकार जनक के पुतले का भी सिर काट कर खुशी मनाई और लंका चले गए। वहां रावण को यह समाचार दे दिया कि दोनों को मार दिया है।
लंका आने के बाद विभीषण में पछतावा हुआ कि मेरे कौन से पाप कर्म के उदय से, भाई के मोह में आकर बिना विचार कर मैंने दोनों को मारा। इतना विचार कर उसने अपने द्वारा किए अशुभ कर्म की शांति के लिए दान, पूजा शुभ क्रियाएं की और संकल्प लिया कि जो मैंने अशुभ कार्य किया है अब वैसा कभी नही करूंगा।
शब्दार्थ
रुधिर-खून, पर्व-अध्याय
अनंत सागर
प्रेरणा
उनचालीसवां भाग
28 जनवरी 2021, गुरुवार, बांसवाड़ा
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