किसी योद्धा की दरिद्रता के कारण बुरी हालत हो गई। उसने खेती की, कई काम किए, घर छोड़ दिया लेकिन सफलता नहीं मिली। एक दिन वह अपने घर वापस लौट रहा था कि तो रास्ते में एक मंदिर में रुक गया। उसने देखा कि एक आदमी एक विचित्र सा घड़ा लिए मंदिर से निकला और उस घड़े को रखकर उसकी पूजा करते हुए कहने लगा, ‘तू मेरे लिए शयनकक्ष तैयार कर दे।’ क्षण भर में शयनकक्ष बन गया। फिर उसने जो चीजें मांगीं, सब आ गई। योद्धा ने सोचा कि उसे इस सिद्ध पुरुष को प्रसन्न कर लेना चाहिए। योद्धा उसकी सेवा में जुट गया। एक दिन वह सिद्ध पुरुष प्रसन्न होकर बोला कि उसे क्या चाहिए।
योद्धा ने कहा, ‘मैं बहुत गरीब हूं। मेरी गरीबी दूर करें।’
इस पर सिद्ध पुरुष ने कहा, ‘तुम्हें कोई विद्या चाहिए या फिर विद्या से अभिमंत्रित घड़ा।’
योद्धा ने अभमंत्रित घड़ा ले लिया और उसने सोचा, ‘ऐसी लक्ष्मी का क्या लाभ, जो विदेश में हो। जिसका मित्रगण उपयोग न कर सकें और जो शत्रुओ को दिखाई न दे।’
यह सोचकर वह अपने गांव आ गया और घड़े से एक सुंदर भवन बनाकर ऐश्वर्य के साथ अपने बंधु-मित्रों के समेत रहने लगा।
एक दिन उसने उस घड़े को अपने कंधे पर रखा और बोला, ‘मैं इसके प्रभाव से अपने बंधु-बांधवों के बीच रहकर ऐश्वर्य का उपभोग कर रहा हूं।’ यह कहकर वह मदिरा पीकर नृत्य करने लगा और घड़ा गिरकर फूट गया।
उसका सारा ऐश्वर्य नष्ट हो गया।
योद्धा सोचने लगा कि अगर वह अभिमंत्रित घड़े की बजाय विद्या मांग लेता तो घड़ा फूट जाने पर भी आराम से रहता।
इस कहानी का नैतिक मूल्य यह है कि अगर विद्या पास हो तो फिर उसे आपसे कभी कोई छीन नहीं सकता और उसके बल पर ऐश्वर्य हमेशा के लिए प्राप्त किया जा सकता है।
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