आचार्य रविषेण द्वारा रचित पद्मपुराण पर्व-14 में लिखा है कि केवलज्ञानी अनंतवीर्य मुनिराज भव्य जीवों को उपदेश दे रहे थे। तब रावण भी उनका उपदेश सुन रहा था। अनंतवीर्य मुनिराज भव्य जीवों को उपदेश दे रहे थे कि जो बिना भावों से दान करता है, वह पत्थर पर बारिश रूपी जल के समान है। वह कार्यकारी नहीं है। खेत में बरसा पानी ही कार्यकारी है। जो कोई सर्वज्ञ वीतराग भगवान को पूजता है, हमेशा विधि पूर्वक दान करता है, उसके फल को कौन कह सकता है। इसलिए धन का दान सात क्षेत्रों में करना चाहिए। इन स्थानों में धन खर्च करने से पूण्य मिलता है। श्रावक को धन का दान इन सात क्षेत्र में करना चाहिए।
• भगवान के प्रतिबिंब बनवाना।
• जिन मंदिर के निर्माण में।
• जिन पूजन में।
• जिन प्रतिष्ठा में।
• सिद्ध क्षेत्रों की यात्रा में।
• चतुर्विधी संघ की भक्ति में।
• शास्त्र दान में।
शब्दार्थ व्यवहारिक :
पर्व- आध्याय, श्रावक- धर्म पर श्रद्धा रखने वाला मनुष्य, प्रतिबिंब- भगवान की मूर्ति, जिन मंदिर- वीतराग भगवान का मंदिर, जिन- जिसने जीत लिए है इंद्रियों को, प्रतिष्ठा- पंचकल्याणक, सिद्ध क्षेत्र- जहां से भगवान मोक्ष गए वह स्थान, चतुर्विधी संघ- मुनि, आर्यिका, क्षुल्लक, क्षुल्लिका।
अनंत सागर
श्रावक
अड़तीसवां भाग
20 जनवरी 2021, बुधवार, बांसवाड़ा
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