मैंने प्रमाद से बहुत दोष किए हैं…. मैं रागी हूं….मैं द्वेषी हूं….मैं दुष्ट हूं…..मैं अशब्द बोलने वाला हूं….मैं पापी हूं….मैं खोटी बुद्धि वाला हूं….. इस प्रकार अपनी कमियों को समझने वाला ही आत्मा को समझ सकता है। आत्मा के स्वरूप का वर्णन शब्दों में नही किया जा सकता है। उसका अनुभव ही किया जा सकता है। उस आत्मा का अनुभव करने के लिए शरीर के साथ लगे कर्मों को धीरे -धीरे क्रम से नष्ट करना होगा। वास्तव में जो अपनी कमियों को स्वीकार कर लेता है वही आत्मा का अनुभव और ध्यान कर सकता है। जैसे बोझ के साथ चलना मुश्किल होता है लेकिन बिना बोझ के आसानी से चला जा सकता है, उसी प्रकार आत्मा के अंदर पापों का, नकारात्मकता का और अहंकार का बोझ हो तो आत्म चिंतन करना मुश्किल ही नही नामुनकिन है।
कमियां तभी निकल सकती हैं जब हम अपनी कमियों को सम्पूर्ण रूप में स्वीकार कर लें अन्यथा फिर आत्मा और कर्म के बीच द्वंद्व चलता रहता है और द्वंद्व आत्मा के गुणों का चिंतन और अनुभव नहीं करने देता है। व्यवहार में देखिए कि जब आप भी किसी द्वंद्व में फंस जाएं तो क्या आप का किसी भी काम में मन लगता है? नहीं लगता है…..उस समय मन बेचैन हो जाता है। बेचैन मन सकारात्मक सोच के साथ किसी भी कार्य का निर्णय नही कर सकता है। ऐसे में फिर आत्म चिंतन कैसे हो सकता है। होता यही है कि हम अपनी कमियों को स्वीकार नही करते हैं। बल्कि कमियों को छुपाने के लिए हम अपनी कमियों का जिम्मेदार दूसरों को बताते रहते हैं। कहते हैं कि इसके कारण ऐसा हुआ, अगर यह ऐसा नही करता तो मैं भी ऐसा नही करता। यह सब छोड़ो और अपनी कमियों, गलतियों को स्वीकार करना सीखो तभी वास्तविक आत्मिक शांति की प्राप्ति होगी।
अनंत सागर
अंतर्भाव
(चौतीसवां भाग)
18 दिसम्बर, 2020, शुक्रवार, बांसवाड़ा
अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज
(शिष्य : आचार्य श्री अनुभव सागर जी)
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