ऐसे सम्पूर्ण रोग, शोक जिनका इलाज विज्ञान के पास भी नहीं है उनका इलाज धर्म साधना करने वाले मुनि चरणों में सम्भव है। पद्मपुराण के पर्व अस्सी में ऐसा ही एक
दूसरी ढाल जीव तत्त्व का विपरीत-श्रद्धान पुद्गल नभ धर्म अधर्म काल, इनतैं न्यारी है जीव-चाल। ताकों न जान विपरीत मान, करि करे देह में निज पिछान।।3।। अर्थ – पुद्गल, धर्म,
सातगौड़ा के पक्षी प्रेम के बारे में जानकर आपको निश्चित रूप से अच्छा लगा होगा और आज हम बात करेंगे उनकी मानवता के बारे में। सातगौड़ा को अस्पृश्य शूद्रों
मनुष्य को अशुभ वचन और बिना प्रयोजन नही बोलना चाहिए। जो मनुष्य इस प्रकार की प्रवृत्ति रखता है वह संकट में पड़ जाता है और कभी कभी तो अपनी जान
दूसरी ढाल अगृहीत-मिथ्यादर्शन का लक्षण और जीवतत्त्व का लक्षण जीवादि प्रयोजनभूत तत्व, सरधै तिन माहीं विपर्ययत्व। चेतन को है उपयोग रूप, विन मूरत चिनमूरत अनूप।।2।। अर्थ – जीव,अजीव,आस्रव,बंध, संवर,निर्जरा मोक्ष