दूसरी ढाल कुदेव- कुधर्म का लक्षण एवं गृहीत मिथ्याज्ञान के कथन की प्रतिज्ञा ते हैं कुदेव, तिनकी जु सेव, शठ करत न तिन भव भ्रमण छेव। रागादि भाव हिंसा समेत,
सातगौड़ा बहुत ही शांत प्रकृति के थे। चाहे खेल हो या अन्य कोई कार्य, वह हमेशा प्रथम रहते थे। वह किसी से झगड़ते नहीं थे, बल्कि अपने से झगड़ने
दूसरी ढाल कुगुरु- कुदेव का स्वरूप धारैं कुलिंग लहि महत-भाव, ते कुगुरु जन्म जल उपलनाव। जे रागद्वेष मल करि मलीन, वनिता गदादि जुत चिन्ह चीन।।10।। अर्थ – जो, बड़प्पन पाकर
सातगौड़ा बहुत ही दयालु थे। उनकी करुणा हर जीव के प्रति थी। लोग उन्हें दयासागर, अहिंसावीर भी कहते थे। जहां भी पशुओं की बलि दी जाती, वहां पहुंचकर वह
पद्मपुराण के पर्व इक्यासी में एक प्रसंग है जो बताता है कि श्रावक को कभी उपकार नही भूलना चाहिए। यह प्रसंग हम सब को अंगीकार करने योग्य है। राम का