02 Jun By admin 0 Comment In शांति कथा भाग छब्बीस : लोकवाणी के स्थान पर जिनेंद्र की वाणी को मानना ही सर्वथा उचित-आचार्य श्री शांतिसागर – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज
02 Jun By admin 0 Comment In रावण भाग चार : मैं मातृ-पितृ भक्त था और दृढ़ निश्चयी भी! – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज
02 Jun By admin 0 Comment In श्रावक शत्रुघ्न ने निर्वाह किया श्रावक धर्म का – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज
01 Jun By admin 0 Comment In शांति कथा भाग पच्चीस : गर्म दूध अंजुलि में डालने और आहार में अंतराय होने पर भी क्रोधित नहीं हुए थे आचार्य श्री शांतिसागर – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज
01 Jun By admin 0 Comment In रावण भाग तीन : मैं सात्विक था… तामसिक नहीं! – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज
01 Jun By admin 0 Comment In कर्म सिद्धांत युद्ध मैदान में ही वैराग्य – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज